शैख अब्दुर्रहमान बिन अब्दुल अज़ीज़ अस्सुदैस इमाम और ख़तीब "मस्जिदे हराम" मक्का

शैख अब्दुर्रहमान बिन अब्दुल अज़ीज़ अस्सुदैस इमाम और ख़तीब “मस्जिदे हराम” मक्का

शैख अब्दुर्रहमान बिन अब्दुल अज़ीज़ अस्सुदैस इमाम और ख़तीब “मस्जिदे हराम” मक्का

अल्लाह के बन्दों! हर साल इन दिनों में मुसलमान ऐसे भव्य प्रासंगिकता का स्वागत करते हैं, जिसके लिए मोमिन का मन मस्तिष्क लालायित रहता है। जिसकी ओर निगाहें टिकी रहतीं और गर्दनें दराज़ रहती हैं, जिसके आगमण पर मुसलमानों के दिलों में खुशी की लहर दौड़ जाती है। यह वास्तव में काबा में हज की अदायगी है, जहां मुकद्दस स्थान हैं, सम्मानित मशाइर हैं, जहाँ नबी पाक पर वह्य उतरी थी, जहां से सारी दुनिया में ईमान का नूर गजमगाया, जहां पर आँखें आंसू बहाती हैं, रहमतें उतरती हैं, मिथ्या पाप क्षपा होते हैं, पद ऊंचा किये जाते हैं, पापों धुल दिए जाते हैं और अल्लाह की दया आम होती है।

जैसा कि बुखारी और मुस्लिम की रिवायत है, हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः

العمرةُ إلى العمرةِ كفَّارَةٌ لمَا بينَهمَا ، والحجُّ المبرورُ ليسَ لهُ جزاءٌ إلا الجنَّةُ . متفق عليه

 “उमरा से पिछलेगुनाह क्षमा कर दिये जाते हैं और हज्जे मबरुर का बदला तो जन्नत ही है“।(सही बुखारी, सही मूस्लिम)

और बुख़ारी और मुस्लिम में हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु की एक दूसरी रिवायत हैः अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः

من حج فلم يرفث ولم يفسق رجع كيوم ولدته أمه – متفق عليه 

 जिस व्यक्ति ने केवल अल्लाह की आज्ञाकारी के लिए हज्ज किया,  सम्भोग और उसके वर्णन से और गुनाहों से सुरक्षित रहा तो वह पवित्र हो कर  ऐसा लौटता है जैसे माँ के पेट से पैदा होने के  दिन पवित्र  था ।(सही ब़ुखारी, सही मुस्लिम) 

बैतुल्लाह के हाजियो! काबा का क़स्द करने वाले अगर हज के लाभ और उसके प्रभाव से लाभान्वित होना चाहते हैं और अल्लाह तआला ने हाजियों के लिए जो पुण्य और सवाब तय कर रखा है उस से फाइदा उठाने के इच्छुक हैं तो उन के लिए आवश्यक है कि इस महान फरीज़े की अदायगी में शरई मन्हज और नबवी तरीका का प्रावधान करें। हज की कुछ शर्तों और उसके कुछ स्तम्भ हैं, कुछ अनिवार्य और कुछ प्रिय काम हैं जिनकी रियायत बहुत ज़रूरी है।

ऐ अल्लाह के बन्दो! ऐ हज यात्रियो! ऐ वह लोगो जिन्होंने वन और मरुस्थलों को पार किया है, विभिन्न फिज़ाओं और समुद्रों की खाक छानी है, कठिनाइयों का सामना किया है, परेशानियाँ सहन की हैं, अपने माल, संतान और अपने देश को अलविदा किया है आपकी सेवा में यह व्यापक नसीहतें हैं, लाभदायक संक्षिप्त बातें हैं, विशेषकर ऐसे समय में जब कि आप इस महान इबादत की तैयारी कर रहे हैं।

पहली नसीहत:

उस आधार को अपनायें जिस पर हज और अन्य सभी इबादतें आधारित हैं, यानी तौहीद, इबादत के सारे कार्य को एक अल्लाह के लिए शुद्ध करना, और उसके साथ किसी को साझी न ठहराना है। जैसा कि अल्लाह ने कहा: कहो दें कि निःसंदेह मेरी नमाज़ और मेरी सारी इबादतें और मेरा मरना और मेरा जीना यह सब शुद्ध अल्लाह ही के लिए है जो सारे जहाँ का मालिक है, उसका कोई साझी नहीं, और मुझे इसी का आदेश हुआ है और मैं सब मानने वालों में पहला हूँ।” (अल- अनआम) हज के उद्देश्य और लाभ में सब से महान उद्देश्य तौहीद की गवाही और शिर्क से बचना है। अल्लाह का आदेश है:

“और जब कि इब्राहीम को काबा के मकान की जगह निर्धारित कर दी,  इस शर्त पर कि मेरे साथ किसी को शरिक न करना” (सूरः अल-हज 26)

अतः दास को चाहिए कि अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति, कठिनाइयों से मुक्ति, और रोगियों के उपचार के लिए केवल अल्लाह की शरण अपनाए जो मामले को चलाने वाला, बुराइयों को दूर करने वाला और ज़मानों को बदलने का मालिक है। अल्लाह के अलावा कोई सत्य पूजा योग्य नहीं,  अल्लाह बेज़ार है उस शिर्क से जो मुशरिकीन अल्लाक के साथ ठहराते हैं।

दूसरी नसीहत:

अपने सारे कामों को शुद्ध अल्लाह की खुशी प्राप्त करने के लिए अंजाम दें। अल्लाह का इरशाद है:

“ख़बरदार! अल्लाह ही के लिए शुद्ध उपासना करना है।”( सूरः ज़ुमरः 3)  न कपट होनी चाहिए और न दिखलावा और न ही अल्लाह से हटकर ग़ैरुल्लाह की ओर ध्यान, चाहे वे व्यक्तिय हों या बैनरज़ या सिद्धांत जो इस मूल सिद्धांत के खिलाफ हों।

तीसरी नसीहत:

रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आज्ञाकारिता को स्वयं पर लाज़िम कर लें। अल्लाह के आदेशों को बजा लायें और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत को गले का हार बना लें क्योंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का खुद इरशाद है “जिसने कोई ऐसा काम किया जो हमारी सुन्नत के अनुसार नहीं वह मरदूद है।” (सही मुस्लिम) और हज के संबंध में कहा “हम से हज के संस्कार (तरीक़े) सीख लो” (सही मुस्लिम)

चौथी नसीहत:

अल्लाह का तक़वा (डर) अपनायें,  उसकी आज्ञाकारिता के काम बजा लायें, और नेक कामों द्वारा उसकी निकटता प्राप्त करने की कोशिश करें, विशेष रूप में उस समय जबकि सबसे श्रेष्ठ समय और स्थान एकत्र हो जाएः

 وَتَزَوَّدُوا فَإِنَّ خَيْرَ الزَّادِ التَّقْوَىٰ ۚ – سورة البقرة: 197

 “और अपने साथ (ईश-भय) पाथेय ले लो, क्योंकि सबसे उत्तम पाथेय अल्लाह का डर है “(बक़राः197)

ज़िक्र, दुआ, तिलावते कुरआन, तल्बिया, नमाज़, तथा नेकी और एहसान का भरपूर एहतमाम होना चाहिए।

पांचवीं नसीहत:

हज की महानता का एहसास दिल और दिमाग पर तारी रखें: न तो यह कोई ख़ुश्की की सैर है, न कोई हवाई मनोरंजन, और न ही उसे प्रथा और आदत के रूप में अंजाम दिया जाता है बल्कि यह ईमानी सैर है जिसका वातावरण ऊंच्च अर्थ और नेक उद्देश्य से ग्रस्त होता है, यह ईमानी और बौद्धिक आलूदगियों और आस्थिक तथा नैतिक विरोधों से दूर रह कर मन वानाबत, उल्लेख अली अल्लाह और सीधे पथ के प्रावधान का सुनहरा मौका है-

छठ्ठी नसीहत:

इस बैते अतीक और मुबारक धरती की महानता और शान का दिल में अनुभव हो, यहां खून नहीं बहाया जा सकता, उसके पेड़ नहीं उखाड़े जा सकते, यहां के शिकार भगाए नहीं जा सकते, यहाँ का खोया हुआ सामान उठाया नहीं जा सकता सिवाय उसके जो घोषणा करना चाहता है। (बुखारी और मुस्लिम) यहाँ पेड़, शिकार,  इंसान और जानवर भय और कष्ट से पूरी तरह सुरक्षित हैं “इस में जो आ जाए अम्न वाला हो जाता है”(आले इमरानः 97) इस जगह ऐसे कार्य जाईज़ नहीं जो शरीयत के उद्देश्य और और इस्लामी नियम के खिलाफ हो, यहाँ केवल अल्लाह ही की तरफ़ दावत दी जा सकती है, यहाँ केवल तौहीद का बैनर ही  बुलंद किया जा सकता है, यहाँ अल्लाह और आखिरत के दिन पर ईमान रखने वालों के लिए वैध नहीं कि मुसलमानों को कष्ट पहुंचाए, या शांति और व्यवस्था से रहने वालों को डराए, या हज के काम सुन्नते नबवी के खिलाफ किए जाएं। अल्लाह का आदेश हैः

 وَمَن يُرِدْ فِيهِ بِإِلْحَادٍ بِظُلْمٍ نُّذِقْهُ مِنْ عَذَابٍ أَلِيمٍ – سورة الحج: 25

 “और जो व्यक्ति उस (प्रतिष्ठित मस्जिद) में कुटिलता अर्थात ज़ूल्म के साथ कुछ करना चाहेगा, उसे हम दुखद यातना का मज़ा चखाएँगे” (सूरः अल-हजः 25)

सातवीं नसीहत:

हज के मसाइल की जानकारी प्राप्त कर के हज की तैयारी करें,  और हज का जो मुद्दा समझ में न आ रहा हो उस  विषय में विद्वानों से जानकारी हासिल कर लें, क्योंकि अज्ञान के आधार पर अल्लाह की इबादत करनी या सुन्नते नबवी के खिलाफ हज के आमाल बजा लाना वैध नहीं है। यह ऐसा मामला है जिसके प्रति हाजियों को काफी सतर्क रहने की जरूरत है।

आठवीं नसीहत:

पापों और गुनाहों से बिल्कुल बचें: अल्लाह ने कहा: “हज में अपनी पत्नी से मेल मिलाप करने, पाप करने और लड़ाई-झगड़ा से बचता रहे।” (सूरः अल-बक़राः 197) नेक कामों के लिए स्वयं को हमेशा तैयार रखें, इसके लिए मन को बहलायें कि कुछ दिन ही ना कष्ट होगा फिर तो आराम करना है। बुराइयों से खुद को दूर रखें चाहे वह जैसी भी हों।

नौवीं नसीहत:

हज को शुद्ध करने और उन सभी कामों को बजा लाने की कोशिश करें जिन से आपकी नेकियाँ ज़्यादा हों, और हज के संस्कार पूरा हो सकें। जिन में नेक दोस्त का चयन और पवित्र और हलाल कमाई है जो हज की स्वीकृति का कारण है।

दसवीं नसीहत:

नैतिक गुणों, और इस्लामी शिष्टाचार से सुसज्जित हों और कथनी और करनी, हाथ या ज़ुबान से अल्लाह के दासों को पीड़ा न पहुँचायें। क्योंकि हज एक ऐसा पाठशाला है जो धैर्य, सहनशीलता, परस्पर सहयोग, त्याग और कुरबानी जैसे पवित्र आचरण और  नेक आदत की शिक्षा देता है।

उम्मत की सेनाओ! यह बहुत महत्वपूर्ण है कि काबा के तीर्थयात्री इस महान फ़रीज़े को समझें, अपने दिलों में उन वसीयतों को उतारें, और अपने चरित्र के द्वारा उनका व्यावहारिक नमूना पेश करें। आज इस बात की सख्त जरूरत है कि मिल्लते इस्लामिया ईमान और अमल, गठबंधन एकता, धैर्य शुक्र, आपसी सहयोग और भाईचारा के पाठ को दोहराए और यह सब उस महान फरीज़े के प्रतिफल और प्रभाव हैं जिन्हें अल्लाह तआला ने अपने आदेश لِیَشہَدُوا مَنَافِعَ لَہُم  में जमा कर दिया है।

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