जैसा कि हम देख रहे हैं कि मुल्क के हालात दिन-ब-दिन ख़राब होते जा रहे हैं. ऐसे में मुसलमानों, ख़ास तौर से नौजवानों को क्या करना चाहिए इसके लिए नीचे कुछ अमली तदबीरें दी जा रही हैं. उम्मीद है कि सभी हज़रात इनको संजीदगी से पढ़ेंगे और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचाने की कोशिश करेंगे.
1- हालात को सुधार पर लाने और समाज में शान्ति और सलामती क़ायम करने के लिए अल्लाह से ख़ास दुआ करें, मस्जिदों में भी इज्तिमाई दुआओं का एहतिमाम किया जाए.
2- हालात को देख कर मायूस बिलकुल न हों, इत्मीनान रखें दुनिया की कोई ताक़त अल्लाह के नूर को अपनी फूँकों से बुझा नहीं सकती जबकि अल्लाह ने उसे फैलाने का इरादा कर लिया हो. (क़ुरआन 61:8) न ही मुसलमानों को दुनिया से ख़त्म किया जा सकता है कि ये अल्लाह की बरपा की हुई आख़िरी उम्मत है. (क़ुरआन 3:110)
3- हालात को देखकर मुश्तइल (Provoke) बिलकुल न हों. अपनी ज़बान से और अपने अमल से इश्तिआल अंगेज़ी (Provocation) का मुज़ाहिरा बिलकुल न करें. चूँकि इस वक़्त इसी बात की कोशिश की जा रही है कि मुसलमान किसी तरह मुश्तइल हों ताकि लोगों को अपने मंसूबे पर अमल करना आसान हो जाए.
4- किसी भी पब्लिक प्लेस पर अगर किसी गरोह (कुछ आवारा क़िस्म के लोगों) या किसी मनचले की तरफ़ से किसी भी तरह का कोई कमेंट या कटाक्ष आए तो उस पर जवाबी कमेंट करने के बजाए बेहतर है कि वहाँ से हट जाएँ और क़ुरआन की इस आयत पर अमल करें, “जब जाहिल मुँह को आएँ तो कह देते हैं कि तुमको सलाम” (25:63) इस तरह हम देखेंगे कि इंशाल्लाह बहुत से बड़े हादिसों को टाला जा सकता है.
5- इस बात की भी कोशिश की जाएगी कि मुसलमानों को सताया जाए और बिला वजह मार-पीट की जाए. इस सिलसिले में हमें फ़िलहाल सब्र से काम लेने और वक़्त को टालने की ज़रूरत है, बल्कि इस मौक़े पर हमें क़ुरआन की इस आयत पर अमल करने की सख़्त ज़रूरत है- “तुम बदी को उस नेकी से दफ़ा करो जो बेहतरीन हो. (अगर तुमने ऐसा किया तो) तुम देखोगे कि तुम्हारे साथ जिसकी दुश्मनी पड़ी हुई थी वो जिगरी दोस्त बन गया है. ये सिफ़त नसीब नहीं होती मगर उन लोगों को जो सब्र करते हैं और ये मक़ाम हासिल नहीं होता मगर उन लोगों को जो बड़े नसीबे वाले होते हैं.”
यक़ीनन ये काम कोई आसान नहीं है. इस काम को करने के लिए जब इन्सान क़दम उठाता है तो शैतान उसको बहकाने की कोशिश करता है, उसको तुर्की ब तुर्की जवाब देने पर उकसाता है. इसलिए क़ुरआन आगे कहता है “अगर तुम शैतान की तरफ़ से कोई उकसाहट महसूस करो तो अल्लाह की पनाह माँग लो, वह सबकुछ सुनता और जानता है.” (क़ुरआन, 41:34-36)
6- कोशिश करें कि अपने काम से काम रखें, बेकार इधर-उधर बैठकर अपना वक़्त बर्बाद न करें (कि ये भी इस्लामी तालीमात के ख़िलाफ़ है). घर से बाहिर निकलने के बाद ज़्यादातर अपने घरवालों और दोस्तों के टच में रहें, ताकि ख़ुदा न ख़ास्ता किसी अनहोनी का बरवक़्त नोटिस लिया जा सके और मुनासिब क़ानूनी कार्यवाही की जा सके.
7- हमें कोशिश करनी होगी कि अपनी ज़िन्दगी के मक़सद को समझें और इस सिलसिले में क़ुरआन हमें जो रहनुमाई करता है उस मक़सद को हासिल करने की कोशिश करें. क़ुरआन में साफ़-साफ़ कहा गया है कि मुसलमानों को निकाला ही इसलिए गया है कि तुम लोगों को भलाई का हुक्म दो और उन्हें बुराई से रोको. लिहाज़ा हमें हर वक़्त अपने मक़सद पर नज़र रखनी चाहिए और इसी के लिए कोशिश करते रहना चाहिए. हमारे रब्त में जो ग़ैर-मुस्लिम भी आएँ उन्हें बताया जाए कि भलाई क्या है और बुराई क्या? ग़लत क्या है सही क्या? हक़ क्या है और बातिल क्या?
8- इसके लिए ज़रूरी है कि हर मुसलमान क़ुरआन से अपने ताल्लुक़ को मज़बूत करे. क़ुरआन से ताल्लुक़ मज़बूत करने का मतलब है कि उसे पढ़ा जाए, उसे समझा जाए, उसपर अमल किया जाए और उसके पैग़ाम को तमाम लोगों तक पहुँचाया जाए. (यक़ीन जानिये आज के जो ये हालात हैं ये क़ुरआन का हक़ अदा न करने ही का नतीजा है. हम हक़ीक़त में क़ुरआन के मुजरिम हैं, लिहाज़ा अब हम इस रविश से बाज़ आ जाएँ और क़ुरआन का हक़ अदा करना शुरू कर दें.)
9- इस नाज़ुक दौर में ये कोशिश भी हमें लाज़िमन करनी होगी कि मुल्क की साल्मियत और मआशरे में अम्न के क़ियाम के लिए हम मस्लकी इख़्तिलाफ़ात को भुलाकर एक हो जाएँ और सब मिलकर एक अल्लाह की रस्सी (क़ुरआन) को मज़बूती से थाम लें. (क़ुरआन 3:103) हम क़ुरआन से वाबस्ता रहें, एक-दूसरे को बुरा-भला न कहें और अल्लाह के दीन को क़ायम करने की जिद्दोजुहुद में एक-दूसरे का तआवुन करते रहें. (ये बात अब तो हमें ज़रूर समझ में आ ही गई होगी कि जब किसी को मारा जाता है तो उससे उसका मसलक नहीं मालूम किया जाता है)
10- फ़ुज़ूल-ख़र्ची बिलकुल न करें. शादी-ब्याह की ग़ैर-इस्लामी रुसूमात या दूसरी फुज़ूलियात और बेजा ख़र्चों से पैसा बचाकर में समाज में अम्न क़ायम करने की जिद्दोजुहुद पर और मिल्लत के नौजवानों (ख़ास तौर से लड़कियों) की तालीम पर ख़र्च करें तो इंशाल्लाह हमारी नस्लें महफ़ूज़ भी रहेंगी और ईमान पर क़ायम भी रह सकेंगी.
11- समाज को बेहतर बनाने और इसमें सकारात्मक (Positive) बदलाव के लिए अपने-आपको पेश करें. इसके लिए हम अपने अन्दर सलाहियतें (Abilities) पैदा करें और कोशिश करें कि अच्छी क़िस्म के ग़ैर-मुस्लिमों से ताल्लुक़ात बेहतर हों. क़ुरआन ही के उसूल के मुताबिक़ अच्छे और नेक कामों में उनका तआवुन करें और उनसे तआवुन लें. जब तक हम अपने ब्राद्राने-वतन से ताल्लुक़ात को बहाल नहीं करेंगे और अच्छे और नेक कामों में एक दूसरे का तआवुन नहीं करेंगे इस मुल्क में नफ़रत की आँधी को कम नहीं किया जा सकता है.
12- सोशल मीडिया पर गन्दे और भद्दे कमेंट्स करना ग़ैर क़ानूनी और ग़ैर-अख़लाक़ी तो है ही इस्लाम के ख़िलाफ़ भी है. इससे न सिर्फ़ आपकी छवि ख़राब होती है बल्कि समाज में बदअमनी फैलती है और इस्लाम भी बदनाम होता है. इसलिए ख़ुदा के वास्ते सोशल मीडिया पर किसी ख़ास शख़्स या गरोह और तंज़ीम के ख़िलाफ़ कोई बात न कहें; जब भी कोई बात कहें सोच-समझ कर कहें, उसूली और मुस्बत (Positive) बात कहें. गन्दी बात हरगिज़ न करें और कॉपी पेस्ट से हमेशा परहेज़ करें कि इस तरह हम ग़लत प्रोपगेंडे के मुजरिम भी हो सकते हैं और झूट को फैलाने के गुनाहगार भी.
हमें उम्मीद है कि अगर इन बातों को ध्यान में रखकर इनपर अमल किया जाए तो माहौल को बिगड़ने से बचाया जा सकता है और शर पसन्दों के इरादों को नाकाम बनाया जा सकता है
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