हज में कंकड़ी मारना अंधविश्वास नहीं अल्लाह की महानता का बयान है।
हमने एक लेख में लिखा था कि इस्लाम बुद्धि-संगत, समझ में आने वाला और मानव स्वभाव से लगता हुआ धर्म है, जिस में अंधविश्वास नहीं, बुद्धि से परे कोई बात नहीं और पैत्रिक प्रथाएं नहीं, इसे पढ़ कर एक सज्जन ने टिप्पणी की कि हज में शैतान को मारना अंधविश्वास नहीं तो और क्या है।?
?इसका उत्तर देने से पहले हम कहेंगे कि बाहर से ऐसा ही लगता है लेकिन सच्चाई कुछ और है, पत्थर मारने की हिकमत अल्लाह की महानता को सिद्ध करना है, शैतान को कंकड़ी मारना नहीं, यह बहुत बड़ा भ्रम है जो लोगों में पाया जाता है कि हज में शैतान को पत्थर मारा जाता है।
?क्या आप जानते हैं कि पत्थर मारते हुए क्या कहा जाता है? हर कंकड़ी के साथ कहा जाता हैः अल्लाहु अकबर “अल्लाह सब से महान है”।
?पता यह चला कि इसके द्वारा अल्लाह का ज़िक्र किया जाता और उसकी महानता बयान की जाती है।
?हाँ अल्लाह की महानता बयान करने के साथ पत्थर मारने में यह भी संकेत होता है कि हम मुसलमान हैं, ऊपर वाले के बताए हुए नियमानुसार जीवन बितायेंगे, ऊपर वाले के नियम की तुलना में राक्षस के बनाए हुए नियमों को हम स्वीकार करने वाले नहीं, मानो पत्थर मारना इसी का प्रतीक है, न कि राक्षस को पत्थर मारना है। इस लिए मन से यह भ्रम ही निकाल दें कि हज में शैतान को कंकड़ी मारी जाती है।
?यहाँ यह बात जान लें कि हम मुसलमान ऊपर वाले के नियम का अनुसरण करते हैं जिसकी हमने अपनी बुद्धि से पहचान की है, मानव हित हेतु अवतरित किए हुए उसके नियम को प्रमाणिक पाया है और जिस संदेष्टा पर वह नियम उतरा उनकी पवित्र जीवनी और उनके प्रवचन को भी हमने प्रमाणिक पाया है, अब हमारे लिए उनका अनुसरण करने में कोई संकोच नहीं रह जाता।
?क्या आप देखते नहीं कि डॉक्टर आपको दवा लिखता है और बताता है कि फलाँ दवा 1 बार, फलाँ दवा 2 बार और फलाँ दवा 3 बार खाना है, आप डॉक्टर की बताई हुई संख्या के अनुसार दवा का सेवन करते हैं और उसकी हिकमत जानने की कोशिश नहीं करते।
?बिल्कुल उसी प्रकार जिस रब ने हमें जीवन व्यवस्था दी उसका एक नाम अल-हकीम है अर्थात् हर चीज़ को उसके उचित स्थान पर रखने वाला, और सृष्टा ही सृष्टि के हित को सही तरीक़े से समझ सकता हैः
“क्या वही न जानेगा जिसने पैदा किया? वह सूक्ष्मदर्शी, ख़बर रखने वाला है।” (सूरः मुल्कः 14) उस तत्वदर्शी रब के अवतरित किए हुए नियम पर आपत्ति करना मूर्खता है, क्यों कि ऊपर वाले ने अपनी सृष्टि को बहुत थोड़ा ज्ञान दिया है, स्वयं उसने कहाः “तुम्हें बहुत थोड़ा ही ज्ञान मिला है।” (सूरः अल-इस्राः 85)
?अतः हमारा उन सारे सज्जनों से अनुरोध है जिनके मन में इस्लाम के प्रति किसी प्रकार का भ्रम है वे पहले विशाल हृदय से एक बार अवश्य इस्लाम का अध्ययन करने का कष्ट करें।
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