हमारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारी भलाई के बहुत इच्छुक रहते थे, उन्हें दिन-रात यही चिंता सिता रही होती कि कैसे हमारी उम्मत दुनिया और आख़िरत में कामयाब हो जाए, इसी लिए जब वह्य उतरती और कोई मामला परेशानकुन होता तो उसी समय मिम्बर पर चढ़ते और सहाबा को संबोधित करते हुए हालात की नजाकत से अवगत कराते थे। ऐसा ही एक वाक़िआ अम्मा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने बयान किया है, वह कहती हैं कि एक दिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारे पास आए, मैंने आपके चेहरे से भांप लिया कि कोई विशेष बात ज़रूर है, आपने वुज़ू किया, किसी से कोई बात नहीं की और (घर से) निकल गये, (मस्जिद गये) मैंने दीवार से कान लगा लिया कि आप जो कुछ फ़रमाना चाहते हैं उसे सुन सकूँ। आप मिम्बर पर बैठे, और अल्लाह की तारीफ बयान करने के बाद कहा:
يا أيُّها النَّاسُ إنَّ اللهَ تبارَك تعالى يقولُ لكم: مُرُوا بالمعروفِ وانهَوْا عن المنكَرِ قبْلَ أنْ تدعوني فلا أجيبَكم وتسألوني فلا أُعطيَكم و تستنصروني فلا أنصرَكم
“ऐ लोगो! अल्लाह तआला तुम्हें फरमाता है कि भलाई का आदेश दो और बुराई से रोको, उस से पहले कि तुम दुआ करो और मैं तुम्हारी दुआ स्वीकार न करूं, मुझ से सवाल करो और मैं तुम्हारा सवाल पूरा न करूँ और तुम मुझ से मदद मांगो और मैं तुम्हारी मदद न करूं”।
आप ने उसके अलावा और कुछ नहीं फरमाया और मिम्बर से उतर आए। (सही इब्ने हिब्बान: 290)
प्रिय भाइयो! कल्पना करें कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम घबराए हुए मस्जिद में दाख़िल हुए ताकि सहाबा को संबोधित करें, लेकिन आपने लंबा चौड़ा भाषण नहीं दिया बल्कि आपने सहाबा को अल्लाह का एक संदेश सुना दिया कि अगर तुम भलाई का हुक्म देना और बुराई से रोकना छोड़ दोगे तो तुम्हारे अल्लाह का दरवाजा तुम्हारे चेहरे पर बंद कर दिया जाएगा, अब लाख लाख दुआ करो, सवाल करो लेकिन तुम्हारी दुआ और तुम्हारे सवाल पर ध्यान नहीं दिया जाएगा और तुम्हारी कोई मदद नहीं हो सकेगी। तो भाइयो और बहनो! हमें समझ में आया कि हमारी दुआयें क़ुबूल क्यों नहीं हो रही हैं, और हमारी असल बीमारी क्या है?
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