हज्जहज्ज का महत्व क्या है,हज्ज क्यों किया जाता है, कब किया जाता है, कहाँ से किया जाता है, कब फ़र्ज़ होता है, उसकी कितनी क़िस्में हैं, और हाजियों के लिए क्या शिष्टाचार होने चाहिएं, इस सम्बन्ध में जानने के इच्छुक हों तो इस लेख को अवश्य पढ़ें:

  

इस्लाम के पाँच स्तम्भों में से हज्ज एक महत्वपूर्ण स्तम्भ है और हर ऐसे पुरुष एंव स्त्री पर अनिवार्य है जो मक्का जाने की शक्ति रखते हों, अल्लाह तआला का कथन है

وَلِلَّـهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلًا ۚ وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ اللَّـهَ غَنِيٌّ عَنِ الْعَالَمِينَ ﴿سورة آل عمران 97

“अल्लाह के घर का हज्ज करना उन व्यक्तियों पर अल्लाह का हक़ है जिन को वहाँ तक पहुँचने का सामर्थ प्राप्त हो, और जिसने इनकार किया तो (इस इनकार से अल्लाह का कुछ नहीं बिगड़ता) अल्लाह तो सारे संसार से निरपेक्ष है।” ( सूरः आले इमरान 97)

हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि रसूल सल्लाल्लाहु अलैहि व सल्लम नें हमें सम्बोधित करते हुए कहाः

يا أيها الناس قد فرض الله عليكم الحج فحجوا

ऐ लोगो! अल्लाह ने तुम पर हज अनिवार्य किया है अतः तुम हज करो, यह सुन कर एक व्यक्ति ने कहाः ऐ अल्लाह के रसूल! क्या हर वर्ष हज अनिवार्य है? आप चुप रहे, यहाँ तक कि उसने तीन बार यही प्रश्न किया, तब आपने फ़रमायाः

لو قلت نعم ، لوجبت، ولما استطعتم

 यदि मैं हाँ कहता तो हर साल हज अनिवार्य हो जाता, और ऐसा हो जाता तो तुम उसकी शक्ति न रखते। (सहीह मुस्लिम 1337)

 

हज्ज का महत्वः

 अल्लाह के रसूल  सल्लल्लाहु अलैहे व सल्लम  ने फ़रमायाः “उमरा से पिछले गुनाह क्षमा कर दिये जाते हैं और हज्जे मबरुर का बदला तो जन्नत ही है (सहीह बुखारी, सहीह मूस्लिम)

हज्जे मबरुक का अर्थ होता है वह हज्ज जिस में अल्लाह की अवज्ञा की गई हो और उसकी पहचान यह है कि हाजी नेकी के काम ज़्यादा से ज़्यादा करने लग जाये और पुन: गुनाहों की ओर पलटे।

अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व सल्लम ने दूसरे स्थान पर फ़रमायाः

من حج فلم يرفث ولم يفسق رجع كيوم ولدته أمه ( متفق عليه )

जिस व्यक्ति ने केवल अल्लाह की आज्ञाकारी के लिए हज्ज किया,  सम्भोग और उसके वर्णन से और गुनाहों से सुरक्षित रहा तो वह पवित्र हो कर  ऐसा लौटता है जैसे माँ के पेट से पैदा होने के  दिन पवित्र  था(सहीह ब़ुखारी, सहीह मुस्लिम) 

जज्ज करने में जल्दी करें:

जब एक व्यक्ति पर हज्ज अनिवार्य हो जाए तो उसकी अदायगी में जल्दी करनी चाहिए क्योंकि प्यारे नबी  सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम का आदेश हैः

 من أراد الحج فليتعجل، فإنه قد يمرض المريض، وتضل الضالة، وتعرض الحاجة رواه احمد وابن ماجة

जिसे हज्ज करने का संकल्प हो वह शीघ्र ही हज्ज कर ले, क्यों कि सम्भव है कि वह बीमार पड़ जाए अथवा उसकी कोई चीज़ खो जाए या उसे कोई आवश्यकता पड़ जाये (अहमद, इब्नेमाजः)

 

हज्ज कब अनिवार्य होता हैः

 हज्ज के अनिवार्य होने के लिए कुछ शर्तों का पाया जाना अति  आवश्यक है जो कुछ यह हैं

(1) इस्लामः गैर-मुस्लिम से हज्ज का मुतालबा नहीं कि इबादत के सही होने के लिए ईमान शर्त है, और यदि करें भी तो उनसे स्वीकार नहीं किया जाएगा और इस्लाम में प्रवेश करने के बाद दोबारा उसे हज्ज करना होगा।

(2) बुद्धिः क्यों कि मुकल्लफ़ होने के लिए बुद्धि का होना आवश्यह है इस प्रकार पालग पर हज्ज फ़र्ज नहीं।

(3) बालिग़ होनाः इस लिए कि नाबालिग जब तक बालिगं न हो जाए वह मुकल्लफ़ नहीं होता। हाँ वह हज्ज कर सकता है परन्तु सवाब माँ-बाप को मिलेगा और बालिग़ होने के बाद जब हज्ज का सामर्थ्य प्राप्त हो जाये तो उस पर हज्ज करना अनिवार्य होगा।

(4) शक्तिः अर्थात् सफ़र खर्च और सवारी की व्यवस्था हो। क्यों कि अल्लाह का आदेश हैः “जो उस तक पहुंचने की शक्ति रखता है।” ( सूरः आले-इमरान 3/97) इस से अभिप्राय सवारी और रास्ते के खर्च की व्यवस्था है। उसी प्रकार आने जाने का रास्ता भी सुरक्षित हो, यदि आर्थिक सामर्थ्य तो प्राप्त है परन्तु आने जाने का रास्ता सुरक्षित नहीं है तो उस पर हज्ज  अनिवार्य नहीं है।

(5) महिलाओं के लिए एक अलग शर्त यह है कि उनके साथ उनका कोई महरम मौजूद हो जैसे पति, बाप, बेटा, भाई, चाचा और मामू आदि। यदि उसके पास उसका कोई महरम नहीं है तो उस पर हज्ज फ़र्ज़ नहीं है परन्तु कुछ विद्वानों ने विश्वनीय महिलाओं के समूह के साथ महिलाओं को हज्ज करने की अनुमति दी है। 

  हज्जे बदल

 हज्जे बदल का अर्थ होता है किसी दूसरे की ओर से हज्ज करना। यदि किसी को हज्ज का सामर्थ्य प्राप्त हो परन्तु बीमारी या बुढ़ापे के कारण स्वयं हज्ज की यात्रा कर सकता हो तो उसके लिए अनुमति है कि वह स्वयं तो हज्ज पर जाये परन्तु उसके लिए यह आवश्यक है कि अपनी ओर से किसी दूसरे को अपने ख़र्च पर हज्ज करने के लिए भेज दे। उसी प्रकार मृतक की ओर से भी हज्ज किया जा सकता है।

हज्जे-बदल करने वाले के लिए आवश्यक है कि वह पहले अपनी ओर से हज्ज अदा कर चुका हो

हज्ज क्यों ?

 हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माईल 0 ने एक अल्लाह की उपासना हेतु काबा की स्थापना की थी, हज्ज उन्हीं की याद को ताज़ा रखते हुए केवल एकेश्वर वाद का एलान है  

 यह एक विश्वव्यापी सामूहिक इबादत का प्रदर्शन है। संसार भर के लोगों की स्थिति को पता लगाने का साधन है। इसमें समूचे संसार के लोग अपने देशी और रष्ट्रीय वस्त्र से आज़ाद होकर एक इस्लामी यूनिफार्म में जाते हैं जिस में पारस्परिक भाईचारा, दया भाव और अम्न शान्ति के साथ साथ इस्लामी एकता का प्रदर्शन होता है।

फिर इहराम के दो कपड़े पहनते ही हर व्यक्ति के हृदय में अल्लाह की महानता जाग उठती है और मरने के बाद की ज़िन्दगी उसके मन एवं मस्तिष्क में ताज़ा हो जाती है जो हज्ज का व्यक्तिगत लाभ है।

 

हज्ज करने वालों के लिए कुछ निर्देश

 1.हज्ज एवं उमरा द्वारा अल्लाह की आज्ञाकारी प्राप्त करने की नीयत करें और हज्ज पर हलाल कमाई ही ख़र्च करें।

2.प्रत्येक गुनाहों से सच्ची तौबा (पश्चाताप) कर लें, यदि लोगों का कोई हक़ है तो उसे अदा कर दें या घर वालों को उसके सम्बंध में सूचित कर दें।

3.कुरआन और हदीस के अनुसार हज्ज के पूरे कार्य सीख लें और सुनी सुनाई बातों पर निर्भर न करें।

4.महिलायें अपने पति अथवा किसी भी मुहरिम के साथ ही हज्ज के लिए जायें, अकेली न निकलें।

5.इहराम की नीयत करने के बाद ज़ुबान को हर प्रकार की बुरी बातों से सुरक्षित रखें। बकवास न करें, अपने साथियों को कष्ट न पहुचायें और उन से भाईचारा का व्यवहार करें।

6.हाजियों की भीड़ में ख़ास कर तवाफ और सई की स्थिति में या कंकरियाँ मारते समय कोशिश करें कि किसी को आप से कोई कष्ट न पहुंचे, यदि किसी से आपको कष्ट पहुंचता है तो उसे क्षमा कर दें।

7.जमाअत से पाँचों समय की नमाज़ें पढ़ें, कुरआन का पाठन करें, अल्लाह की याद में लगे रहें और ख़ूब दुआयें करें।

8.महिलायें ग़ैर मर्दो के समक्ष बे-पर्दा न हों, यदि उनके सामने से कोई अजनबी गुज़रे तो वह चादर आदि से अवश्य पर्दा करें

 

हज्ज की क़िस्में

 हज्ज तीन प्रकार का होता हैः

हज्जे तमत्तोः हज्ज के महीनों (शव्वाल, ज़िलकादः और ज़िलहिज्जः के प्रथम दस दिन) में केवल उमरा करने के बाद प्रतिक्षा करना फिर 8 ज़िलहिज्जः को हज्ज के इहराम में प्रवेश कर जाना।

हज्जे क़िरानः हज्ज और उमरा दोनों का एक साथ इहराम बाँधना।

हज्जे इफरादः मीक़ात से केवल हज्ज की नीयत कर के इहराम बाँधना हज्जे क़िरान और हज्जो इफराद करने वाले हाजी क़ुर्बानी के दिन ही हज्ज और उमरा से हलाल होंगे।

 

हज्ज और उमरा के मवाक़ीत

 अर्थात् वह जगहें जहाँ से हज्ज और उमरा के लिए इहराम बाँधा जाता है। नबी सल्लल्लाहु अलैहे व सल्लम ने पाँच जगहें निर्धारित फरमाई हैं:

(1) ज़ूल-हुलैफा (अब्यार अली) : यह मदीना के लोगों या उस रास्ते से मक्का जाने वाले हाजियों का मीक़ात है।

(2) जुह़फा : यह शाम, मिस्र, उन्दलुस, अल-जज़ाएर, रुम, लीबिया और मराकश आदि से आने वाले हाजियों का मीक़ात है।

(3) क़रनुल मनाज़िल : यह नज्द, हिजाज़ और खाड़ी के देशों से ज़मीनी रास्ते से जाने वालों का मीक़ात है

(4) यलमलम (सादया) : यहाँ से यमन, इंडोनेशिया, चीन,जावा, भारत और पाकिस्तान आदि से जाने वाले लोग इहराम बाँधते हैं। 

(5) ज़ाते इर्क़ : यह इराक, ईरान, उत्तर पूर्व से बग़दाद और हाइल के रास्ते से आने वाले हाजियों का मीक़ात है। 

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