अल्लाह ने सम्पूर्ण सृष्टी को स्वतंत्र पैदा किया है। अल्लाह को यह बात कदापि प्रिय नहीं कि उसकी सृष्टि किसी अन्य की दासता में रह कर जीवन बिताए। कारण यह है अल्लाह सृष्टा है तो वह अपनी प्रत्येक सृष्टि से दासता की मांग स्वयं अपने लिए करता है और अपने दासों को अपनी दासता में देखना चाहता है। क्योंकि उसने सम्पूर्ण जीव-जातियों को पैदा ही नहीं किया है वरना उन पर विभिन्न प्रकार के उपकार भी किया है। तथा उन सब का संरक्षण भी कर रहा है।
जब उसी ने संसार को रचाया, उसी ने हर प्रकार के उपकार किए, वही संसार को चला रहा है तथा संसार की अवधि पूर्ण होने के पश्चात वही संसार को नष्ट भी करेगा तो मानव को प्राकृतिक रूप में उसी की दासता की छाया में जीवन भी बिताना चाहिए। और उसके अतिरिक्त हर प्रकार की दासता को नकार देना चाहिए।
स्वतंत्रता किनता महत्वपूर्ण उपकार है इसका महत्व उस से पूछिए जो स्वतंत्र वातावरण में जीवन बिताने के बाद दासता की ज़ंजीरो में जकड़ा हुआ हो। इसी लिय इस्लाम ने स्वतंत्रता पर बहुत बल दिया, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “तहरीके आजादी” पृष्ठ 14 में लिखा है :
” इनसानों को मानव की दासता से मुक्ति दिलाना इस्लाम का ईश्वरीय उद्देश्य है।”
मौलाना अपनी दूसरी पुस्तक “क़ौलेफस्ल” पृष्ठ 50 में लिखते हैं:
” इस्लाम ने ज़ाहिर होते ही यह घोषणा किया कि सत्य शक्ति नहीं बल्कि स्वयं सत्य है, और ईश्वर के अतिरिक्त किसी के लिए उचित नहीं कि ईश्वर के दासों को अपना अधीन और दास बनाए।”
मौलाना आज़ाद ने मुसलमानों का नेतृत्व करते हुए मात्र दो ही रास्ते अपनाने की दावत दी है। आज़ादी या मौत, अतः वह पूरे निर्भयता से कहते हैं:
“इनसानों के बुरे व्यवहार से किसी शिक्षा की वास्तविकता नहीं झुठलाई जा सकती। इस्लाम की शिक्षा उसके ग्रन्थ में मौजूद है। वह किसी स्थिति में भी वैध नहीं रखती कि स्वतंत्रता खो कर मुसलमान जीवन बिताए। मुसलमानों को मिट जाना चाहिए। तीसरा रास्ता इस्लाम में कोई नहीं” (क़ौले-फैसल, 63-64)
जी हाँ ! इस्लाम कदापि नहीं चाहता कि इनसान दास बन कर जीवन बिताए।
स्वतंत्रता अभियान और मुसलमानः
भारत का इतिहास साक्षी है कि जब तन के गोरे और मन के काले अंग्रेज़ों ने भारत में व्यवसाय के नाम पर अपना क़दम जमाना चाहा तो सर्वप्रथन इस्लामी विद्वानों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ युद्ध करने की घोषणा की थी। सब से पहले शाह अब्दुल अज़ीज़ दिहलवी ने अंग्रेज़ों से युद्ध का फतवा दिया और फिर इस सोच को भारत के कोने कोने में फैलाया गया, 1857 से पहले मुसलमान ही इस अभियान में शरीक थे, बाद में मुस्लिम विद्वानों ने ग़ैर-मुस्लिम भाइयों तक भी अपनी भावनाएं पहुंचाईं यहां तक कि स्वतंत्रता का अभियान देश के कोने कोने में चलने लगा। अंततः 1947 में हमारा भारत स्वतंत्र हो गया। मुसलमानों ने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए जो बलिदान दिया है वह भारत के इतिहास का एक रौशन बाब है।
चप्पा चप्पा बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने हैं।
आज भी हमें अपने देश से प्रेम है और उसके लिए हम कटने मरने तक की भावना रखते हैं। परन्तु भारत में साम्प्रदाइकता का बुरा हो कि आज़ादी के बाद ही कुछ लोग ऐसे पैदा हुए जिन्होंने अंग्रेज़ों की पालीसी “फूट डोलो हुकूमत करो” को अपनाते हुए देश में घृणा फैलाने की सम्भवतः कोशिश की, मुसलमानों को हमेशा देश में सौतेला सिद्ध करने का प्रयास करते रहे, और आज जब कि हम भारत का 71वाँ स्कवतंत्रता दिवस मनाने जा रहे हैं इसी नीति के अनुसार हुकूमत की जा रही हैं, हम असहिष्णुता के दास बनते जा रहे हैं जो कभी किसी ने सोचा भी नहीं था अब वह हमारी आंखों के सामने हो रहा है जो खेद का विषय है। अभी देश की मांग है कि हम स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर स्वयं से संकल्प लें कि हम अपने देश में सहिष्णुता और भाईचारा को बढ़ावा देंगे, अपनी आने वाली पीढ़ी को भी हम यह पाठ सिखायेंगे जिनके कंधों पर भविष्य में देश की ज़िम्मेदारी आ रही है। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने ख़ून का बलिदान देकर इस देश को सींचा था उसकी आबयारी हमें ही करनी है ताकि हमारा देश प्रगति करता रहे और विभिन्न रंगों के फुलों से सुसज्जित हमारा यह चमन दुनिया में अपनी खूशबू बिखेरता रहे।
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