प्रथम पुरुष की संतान को राक्षस दस शताब्दी तक पथभ्रष्ट करने में सक्षम न हो सका, सब से पहले नूह अलै. के युग में मूर्तिपूजा का आरंभ हुआ जिसकी कहानी यह है कि राक्षस ने उस योग के 5 नेक विद्वानों के मरने के बाद उनके श्रृद्धालुओं के पास आकर उनसे कहन शुरू किया कि मरने वाले इन पवित्र आत्माओं की मूर्तियाँ बना कर अपनी बैठकों में रख लो, ताकि उनको देख कर तुम्हारे अंदर भी नेकी का साहस पैदा हो सके। अतः लोगों ने ऐसा ही किया, लेकिन जब बनाने वाले जुग़र गए फिर उनकी संतान आई तो राक्षस उनके पास आकर कहने लगा कि देखो संकटों में तुम्हारे पूर्वज इनसे मांगते थे और उन्हें मिला करता था, तुम भी उन से माँगा करो।
फिर क्या था लोगों ने ऊपर वाले को भुला कर नीचे वाले की ही पूजा शुरू कर दी। तब अल्लाह ने नूह अलै. को नबी बनाकर भेज जो अपने समुदाय को साढ़े 9 सौ वर्ष तक एक अल्लाह की ओर बुलाते रहे, लेकिन जब समुदाय के अधिकांश लोगों ने संदेश को अपनाने से इनकार किया तो एक दिन अल्लाह की यातना आई और नूह अलैहिस्सलाम के नाव में सवार होने वलों के अलावा बाक़ी सब को अल्लाह ने नष्ट कर दिया।
जब लोगों में फिर पथभ्रष्ट आई तो अल्लाह ने संदेष्टाओं को भेजा, जो हर युग और हर देश में आते रहे, जिनकी संख्या 124000 तक पहुंचती है लेकिन लोग अपने सवार्थ के लिए इनकी शिक्षाओं में परिवर्तन करते रहे। ईश्वर जो सम्पूर्ण संसार का स्वामी था उसकी इच्छा तो यह थी कि सारे मनुष्य के लिए एक ही संविधान हो, सारे लोगों को एक ईश्वर, एक संदेष्टा, तथा एक ग्रन्थ पर एकत्र कर दिया जाए परन्तु आरम्भ में ऐसा करना कठिन था क्योंकि लोग अलग अलग जातियों में बटे हुए थे, उनकी भाषायें अलग अलग थीं, एक दूसरे से मेल-मिलाप नहीं था, एक देश का दूसरे देश से सम्पर्क भी नहीं था। यातायात के साधन भी नहीं थे, और मानव बुद्धि भी सीमित थी।
यहाँ तक कि जब सातवीं शताब्दी ईसवी में सामाजिक, भौतिक और सांसकृतिक उन्नति ने सम्पूर्ण जगत को इकाई बना दिया तो ईश्वर ने हर हर देश में अलग अलग संदेष्टा भेजने का क्रम बन्द करते हुए संसार के मध्य अरब के शहर मक्का में महामान्य हज़रत मुहम्मद ( ईश्वर की उन पर शान्ति हो) को संदेष्टा बनाया और उन पर ईश्वरीय संविधान के रूप में क़ुरआन का अवतरण किया। वह जगत गरू बनने वाले थे, समपूर्ण संसार के कल्यान के लिए आने वाले थे इसी लिए उनके आने की भविष्यवाणी प्रत्येक धार्मिक ग्रन्थों ने की थी, वही नराशंस तथा कल्कि अवतार हैं जिनकी आज हिन्दू समाज में प्रतीक्षा हो रही है। उनको किसी जाति तथा वंश के लिए नहीं बल्कि सम्पूर्ण संसार के लिए भेजा गया
[ica_orginalurl]