अल्लाहने हम सबको अनगिनत नेमतों से नवाज़ा है जिन से हम आए दिन लाभ उठा रहे हैं….इन सारी नेमतों में सब से महान नेमत इस्लाम के बाद बुद्धि है, इसी ज्ञान के आधार पर हम नई नई चीजें ईजाद कर रहे हैं, कभी हमने सोचा कि यह बुद्धि कहाँ से आई? यह ज्ञान किसने दिया? अल्लाह ने आज से साढ़े चौदह सौ साल पहले हिरा की पहली प्रकाशना में यह बात कह दी थीः
عَلَّمَ الْإِنسَانَ مَا لَمْ يَعْلَمْ العلق:5
“मनुष्य को वह ज्ञान प्रदान किया जिसे वह नहीं जानता था ” (सूरः अल-अलक़ 5)
यह अल्लाह की दया और उपकार है कि उसने हमें वह सिखाया जिसे हम नहीं जानते थे. अतः आज मनुष्य अल्लाह की प्रदान की हुई उसी बुद्धि के आधार पर नई नई चीजें ईजाद कर रहा है. जिस से मानव जीवन में आसानयाँ पैदा हो रही हैं और इंसान ज़मीन पर मौजूद अल्लाह की अपार नेमतों से भरपूर आनंद हो रहा है। ज़रा एयरकंडिशन की आसानी देखिए कि एक व्यक्ति सख्त गर्मी में अपने घर में आराम और राहत की सांस ले रहा होता है, हीटर की सुविधा देखिए कि आदमी सख़्त ठंढ़ी में भी अपने कमरे को गर्म किए रहता है. फ्रिज की नेमत को देखिए जिस में मनुष्य महीनों तक खानपान की सामग्रियां सुरक्षित रखता है, उसी तरह यातायात के साधनों में आसानियाँ कि आदमी घंटों में कहां से कहां पहुंच जाता है हालांकि एक समय था कि लोग लंबी दूरी पैदल चलकर तय करते थे. उसी तरह नवीन उपकरण जैसे कंप्यूटर, इंटरनेट, और टेलिवीज़न की सुविधाएं भी एक तरह की नेमत है शर्ते यह है कि एक व्यक्ति उनका उपयोग सही ढंग से करे।
प्रिय पाठको! इन्हें अविष्कारों में से एक नई आविष्कार मोबाइल फोन है. जिसके बिना आज हमारा जीना मुश्किल है। मोबाइल फोन उपलब्ध होने की वजह से लोगों में कई आसानियाँ पैदा हो गई हैं, इस से समय और धन में बचत होती है, इंसान यात्रा की कठिनाइयों से बच जाता है, मित्र या करीबी रिश्तेदार से संबंधित कोई बात पहुंची, तुरंत मोबाइल फोन डायल किया और स्थिति की जानकारी ले ली, चाहे वह दुनिया के किसी भी कोने में रह रहा हो. हालांकि अभी दस बीस साल पहले तक हमें अपने रिश्तेदारों के हालात जानने के लिये पत्रों का सहारा लेना पड़ता था जिसके लिये महीनों इंतजार करने पड़ते थे, तब जाकर हमें पत्र मिलता था और हालात की जानकारी होती थी. अल्लाह का शुक्र है कि आज ऐसी कोई परेशानी नहीं रही बल्कि आज हाल यह है कि हर व्यक्ति के हाथ में मोबाइल फोन दिखाई देता है।
लेकिन कभी हमने सोचा कि इन सारी नेमतों के मिलने के बाद एक मुसलमान के दिल की स्थिति कैसी होनी चाहिए? याद रखें!हम से एक एक नेमत के बारे में कल महा-प्रलय के दिन पूछा जाने वाला हैः
ثُمَّ لَتُسْأَلُنَّ يَوْمَئِذٍ عَنِ النَّعِيمِ التكاثر: ٨
तुम से क़ियामत के दिन नेमतों के बारे में अवश्य पूछा जाएगा। यह ए सी ….यह हीटर….यह फ्रिज….यह वाहन….यह विमान….यह कंप्यूटर….यह इंटरनेट….यह टेलिविज़न और यह मोबाइल फोन…. इन सारी सुविधाओं के बारे में हम अल्लाह के पास उत्तरदाई हैं। इसलिए मुसलमान होने के नाते हमें सोचना है और विचार करना है कि हम किस हद तक इन नेमतों का उपयोग अल्लाह के बताए हुए तरीके के अनुसार कर रहे हैं. अगर इन नेमतों का उपयोग अल्लाह की अवज्ञा में हुआ तो कल महा प्रलय के दिन अल्लाह की पकड़ बहुत सख्त होगी।
प्रिय पाठको! क़्यामत के दिन की जवाबदेही से अगर हम बचना चाहते हैं तो हमें इन सारी नेमतों को अल्लाह तआला की इच्छा के अनुकूलन उपयोग करने होंगे। यह तो एक रहा फिर इस्लाम नेजीवन के हर क्षेत्र में हमारा मार्गदर्शन किया है, और उसके शिष्टाचार बताए हैं। एक मुसलमान को चाहिए कि वह जीवन के हर क्षेत्र में उन शिष्टाचारो को लागू करने का प्रयत्न करे, तो मोबाइल फोन का उपयोग करते समय आवश्यकता पड़ती है कि इसके उपयोग के शिष्टाचार को हम जानें। अब सवाल यह पैदा होता है कि मोबाइल फोन से संबंधित शिष्टाचार क्या हैं? तो लीजिए निम्न में प्रस्तुत है कुछ शिष्टाचारः
(1) फोन करने से पहले नंबर जाँच कर लें:
फोन करने से पहले नंबर जाँच कर लेना चाहिए कि वास्तव में यह अमुक व्यक्ति का नंबर है, ताकि ऐसा न हो कि किसी दूसरे का नंबर डायल हो जाए और आप उसके लिये क्रोध का कारण बन जाएँ, अगर कभी न चाहते हुए भी इत्तेफाक़ से ऐसा हो जाता है तो विनम्रता से उन से क्षमा मांग ली जाए कि “माफ करना, गलती से आपका नंबर डायल हो गया “.
(2) फोन करते समय इस्लामी शब्दों का प्रयोग करें:
फोन करते समय इस्लामी शब्दों का प्रयोग किया जाए, जैसे जब बात शुरू करें तो कहें अस्सलामु अलैकुम, उसी तरह फोन उठाने वाला भी फोन उठाते हुए अस्सलामु अलैकुम कहे क्योंकि सलाम में पहल करना बेहतर है. आम तौर पर लोग फोन करते हैं, या उठाते हैं तो कहते हैं “हेलो” “हेलो” यह इस्लामी तरीक़ा के खिलाफ है. इस्लाम हमें यह शिक्षा देता है कि जब हम किसी से मिलें तो कहें अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु। यह आदेश मुलाकात करने,पत्र लिखने और फोन करने सब पर लागू होगा…. फिर एक बात यह भी है कि “हेलो” कहने के कारण जहां एक तरफ दूसरों की नकल होती है तो वहीं एक आदमी अल्लाह के अपार पुण्य और सवाब से भी वंचित रह जाता है।
इमाम बुखारी ने अल-अदबुल मुफरद में हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि एक आदमी अल्लाह रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास से गुजरा तो उसने कहाः अस्सलामु अलैकुल, आपने कहाः उसे दस नेकियाँ मिलीं…. दूसरा आदमी गुज़रा तो कहाः अस्सलामु अलैकुल व रहमतुल्लाह, यह सुन कर आपने फरमाया: उसे बीस नेकियाँ मिलीं….तीसरा आदमी गुजरा तो उसने कहा: अस्सलामु अलैकुल व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु,तो आप सल्ल. ने फरमाया: उसे तीस नेकियाँ मिलीं।
प्रिय पाठको! इस हदीस को सामने में रखकर जरा गौर करें कि अगर हम फोन पर इस्लामी तरीक़ा को अपनायें और अस्सलामु अलैकुल व रहमतुल्लाहि व बरकातुहु कहें तो यहाँ हम केवल फोन करने पर तीस नेकियों के हकदार ठहरते हैं. अब इसी से आप अनुमान लगा सकते हैं कि एक आदमी “हेलो ” कहने की वजह से कितनी नेकियों से स्वयं को वंचित कर लेता है। फिर एक मुसलमान के लिये उचित है कि वह अपने जीवन के सभी मामलों में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आप के साथियों को अपना आदर्श और मॉडल बनाए। सुफयान सौरी रहिमहुल्लाह ने बहुत पते की बात कही हैः
اِنِ استَطَعتَ ان لا تُحِکَّ رَاسَکَ اِلا بِاثَرِ فَافعَل
” अगर तुम्हारे लिये संभव है कि किसी हदीस और प्रमाण के आधार पर ही अपना सिर खुजलाओ तो ऐसा कर गज़रो।”अभिप्राय यह है कि एक मुसलमान का हर प्रक्रिया चाहे उसका संबंध सांसारिक मामलों से क्यों न हो नबी सल्ल. के तरीक़े के अनुसार होना चाहिए, हाँ! तो मैं आज से आशा करता हूं कि हमारे जो पाठकगण फोन पर “हेलो” कहने के आदी हैं वह इससे बचेंगे और सलाम द्वारा बातचीत की शुरुआत करेंगे.
(3) सलाम करने के बाद अपना नाम बतायें कि मैं फलाँ बात कर रहा हूं:
फोन पर बात करने का तीसरा शिष्टाचार यह है कि सलाम करने के बाद अपना परिचय कराया जाए कि “में फलाँ बोल रहा हूँ” हाँ यदि किसी से ऐसा जान पहचान है कि ध्वनि से ही तुरंत वह आपको पहचान लेता है तो ऐसी जगह परिचय कराने की जरूरत नहीं. कुछ लोगों की आदत होती है कि जब किसी ने फोन पर बात करेंगे तो पूछने लगते हैं कि “आपने मुझे पहचाना?” इस से आदमी हर्ज में पड़ जाता है, अगर कोई स्पष्ट रूप में कह दे कि “नहीं” तो लीजिए! अब खैरियत नहीं रही, उसे कूसना शुरू कर देंगे कि आप तो बड़े आदमी हैं, हमें कैसे पहचानेंगे, हालांकि ऐसी कोई बात नहीं होती. वह बंदा दिल का साफ होता है और उसे यह बात सुनकर उसे तकलीफ होती है। यह कहना भी गलत है कि उन्होंने मेरा नंबर सुरक्षित नहीं रखा. में कहता हूं कि उसके प्रति अच्छा ख्याल रखें….हो सकता है कि उसके सेट में जगह खाली न हो. फिर इस अंदाज़ में पूछना भी तो इस्लामी शिष्टाचार के खिलाफ है।नाम बताने में आख़िर क्या जाता है।
सहीह बुखारी और मुस्लिम की रिवायत है, हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और आपको आवाज़ दी तो आपने कहा: कौन…? मैंने कहा: “أنا” यानी मैं हूँ. अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर निकले तो यह कह रहे थे “أنا أنا” अर्थात् मैं मैं, मानो आपने इस प्रकार के उत्तर को नापसंद किया, क्योंकि “मैं” कहने से कोई बात समझ में नहीं आती, आज भी कितने लोगों की आदत होती है कि जब दरवाजे पर दस्तक देंगे और आप उनसे पूछें कि “कौन?” तो तुरंत कहेंगे “मैं”। भई! “मैं” कहने से क्या समझ में आएगा, नाम बताओ….तात्पर्य यह कि फोन करने वाले को चाहिए कि वह सबसे पहले अपना नाम बताए ताकि जो बात कर रहा है वह हर्ज में न पड़े और तुरन्त पहचान ले.
(4) जिसे फोन कर रहे हों उसकी स्थिति का ख्याल करें:
फोन पर बात करने काचौथा अदब यह है कि जिसे फोन कर रहे हों उसकी स्थिति का ख्याल करें, संभव है एक आदमी अपने किसी निजी काम में संलग्न हो, या वह ऐसी जगह पर हो जहां फोन उठाना उसके लिये उपयुक्त न हो, ऐसी स्थिति में अगर जवाब नहीं मिला, या जवाब में जल्दबाजी पाई गई, या गर्मजोशी से जवाब न मिल सका तो फ़ोन करने वाले को चाहिए कि वह जिसे फोन किया है उसके प्रति अच्छा गुमान रखे और उसके लिये बहाना तलाश करे। उसी तरह जिसे फोन किया गया है उसके लिये भी उचित है कि यदि वह ऐसी जगह है जहां फोन का जवाब नहीं दे सकता तो या तो वह मोबाइल को साइलेंट में रख दे, फिर बाद में क्षमा चाहते हुए कॉल करे….या वह जल्दी से बता दे कि वह ऐसी जगह पर है जहां फोन का जवाब नहीं दे सकता। यह दिल की सफाई का अच्छा तरीका है।
फिर Ring देने में संतुलन को ध्यान में रखना चाहिए, कितने लोग जवाब न मिलने पर बार बार Ring देते हैं। यह नहीं सोचते कि हमारा साथी बीमार तो नहीं, किसी जरूरी मीटिंग में तो नहीं, बल्कि कुछ लोग तो जवाब न मिलने पर गुस्सा हो जाते हैं, जल्दबाज़ी में ऊट पटांग बोल देते हैं। यहाँ मुझे एक घटना याद आई….मेरे एक करीबी मित्र ने मुझे एक बार फोन किया. में उस समय नमाज़ में था, और मेरा मोबाइल साइलेंट था, जब मैंने नमाज़ समाप्त करने के बाद मोबाइल देखा तो उस में 10 मिस कॉल थे और एक SMS था जिसमें लिखा था “यदि आप मेरा फोन करना सख्त गुज़रता है तो संकेत दें. रब्बे काबा की क़सम! मैं आपको इसके बाद कभी फोन नहीं करूंगा “
देखा! यह जल्दबाज़ी का परिणाम है….उन्होंने तुरंत माना कि जान बूझ कर जवाब नहीं दे रहा हूँ हालांकि सच्चाई कुछ और थी. मैं नमाज़ में था. इसलिए जल्दबाजी में कोई बात नहीं कहनी चाहिए जिस से बाद लज्जित होना पड़े। उसी प्रकार जिसे फोन कर रहे हों उसकी ओर से जवाब न मिलने पर हमेशा अच्छा गुमान रखना चाहिए।
(5) फोन करने के लिये उचित समय का चयन करें:
फोन पर बात करने का पांचवां शिष्टाचार यह है कि फोन करने के लिये उचित समय का चयन करना जाए, हर समय एक व्यक्ति फोन का जवाब देने के लिए तैयार नहीं रहता, कभी घरेलू संलग्न होती है, कभी वे अपने काम में व्यस्त होता है. खासकर ऐसे लोगों से बात करते समय उचित समय का ध्यान रखना बहुत जरूरी है जिसका समय बहुत कीमती होता है. कितने लोग देर रात में फोन करते हैं जब एक आदमी सोया होता है, जाहिर है इस से नींद खराब होती है, और कुछ लोगों को ऐसी प्रक्रिया सख्त नागवार गुज़रती है. इसलिए फोन करने के लिये उचित समय का ख़्याल रखना जरूरी है।
(6) सीमित अवधि में बात करें:
फ़ोन पर बात करने का छठा शिष्टाचार यह है कि फोन करने की अवधि का निर्धारण करना चाहिए. कितने ऐसे लोग हैं जो फोन करने बैठते हैं तो घंटों बातें करते रहते हैं, एक मुस्लिम जीवन के किसी भी क्षेत्र में बेपरवाही से काम नहीं लेता. फोन के उपयोग में भी लोग लापरवाही से काम लेते हैं. फोन पर हमारे जितने पैसे बर्बाद हो रहे हैं यदि इस में से हल्की सी कटौती कर लें तो में समझता हूँ कि कितने गरीबों का भला हो सकता है। तात्पर्य यह कि फोन पर व्यर्थ बातचीत और समय नष्ट करने से बचना चाहिए, फोन आवश्यकतानुसार इस्तेमाल किया जाए उसे तसल्ली का सामान न बनाया जाए।
(7) मस्जिद में प्रवेश करें तो मोबाइल फोन बंद कर दें:
फोन का सातवां शिष्टाचार यह है कि जब मस्जिद में प्रवेश करें तो मोबाइल फोन बंद कर दें या साइलेंट में कर दें. ताकि फोन के रिंग से नमाज़ियों की नमाज़ प्रभावित न हो. अगर अज्ञानता में मोबाइल फोन खुला रह गया और नमाज़ के बीच कॉल आ गई तो तुरंत मोबाइल बंद कर देना चाहिए यधपि आप नमाज़ में हों इस में कोई हर्ज नहीं. बल्कि बंद करना आवश्यक है क्योंकि इस से लोगों की नमाज़ें प्रभावित होती हैं. कितने लोग फोन आने पर मोबाइल बंद नहीं करते और मस्जिद में दूसरों की नमाज़ें खराब करते हैं. ऐसा करना बिल्कुल गलत है. और अज्ञानता का परिणाम है, उसी तरह वह आदमी जो मोबाइल फोन बंद करना भूल गया तो उसे अक्षम समझना चाहिए और बेकार में उसके साथ कठोरता नहीं अपनानी चाहिए. क्या हम नहीं देखते कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आदर्श कैसा था ? एक देहाती आता है और मस्जिद के एक कोना में पेशाब करने बैठ जाता है. सहाबा रज़ि. उसे डांटते हैं तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन्हें मना कर देते हैं फिर जब वह पेशाब से फारिग़ हो जाता है तो एक बाल्टी पानी मंगवाते हैं और आदेश देते हैं कि इसे गंदगी के स्थान पर बहा दिया जाए. उसके बाद फ़रमाते हैं:
إِنَّما بُعِثْتُم مُيَسِّرينَ ولَمْ تُبْعَثوا مُعَسِّريْنَ سنن الترمذي 147
“तुम आसानी करने के लिये भेजे गए हो सख्ती करने के लिए नहीं भेजे गए”.
(8) सभा में बैठे बैठे बातें न करें:
फोन का आठवां शिष्टाचार यह है कि यदि आप सम्मानित पुरुषों की सभा में बैठे हों और उसी बीच कॉल आ जाए तो उचित है कि ऐसी जगह पर मोबाइल को धीमे से साइलेंट कर दिया जाए. और अगर कोई जरूरी कॉल हो तो अनुमति लेकर बाहर निकल जाएँ, फिर बात करें. बड़ों की सभा में बैठे फोन का जवाब देने लगना उचित नहीं. हाँ! यदि दोस्तों की सभा हो तो मजलिस में ही बात करने की गुंजाइश है परन्तु बात करने से पहले उपस्थितजनों से अनुमति ले ली जाए।
(9) फोन करते समय न स्वय बिल्कुल धीमा हो न बिल्कुल तेज़ः
फोन का नवां शिष्टाचार यह है कि बात हल्की आवाज में करनी चाहिए, परन्तु इतनी धीमी आवाज़ भी न हो कि बात सुनी और समझी न जा सके. कुछ लोग जब फ़ोन पर बात करते हैं तो इतना जोर में बात करते हैं कि जैसे वह फोन द्वारा नहीं बल्कि डाइरेक्ट अपनी बात अपने देश में उस व्यक्ति तक पहुंचाना चाहते हों. हालांकि फोन पर दरमियानी आवाज़ में बात करें तो बात अच्छी तरह से सुनी जा सकती है. जितना अधिक तेज़ आवाज़ में बोलेंगे उतना ही बात समझ में नहीं आती।
(10) मोबाइल फोन सार्वजनिक स्थान पर न रखें:
फोन का दस्वां शिष्टाचार यह है कि मोबाइल फोन सार्वजनिक स्थान पर न रखे जाएं, क्योंकि हो सकता है कि कोई दूसरा उसे उठाकर इस्तेमाल करने लगे या बच्चे किसी ऐसे व्यक्ति को फोन लगा दें जिन्हें फोन नहीं करना चाहिए था. या हो सकता है कि इस में किसी तरह के रहस्य की बात हो जिसे दूसरों का जानना पसंद न करते हों, या ऐसे SMS या छवियाँ हों जो आपके परिवार के हों और दूसरा गलत दृष्टि से उसे देखने और सोचने लगे. इन सारे संदेहों से बचने का एक मात्र तरीका यह है कि मोबाइल फोन हर जगह न रखा जाए. उसी तरह एक व्यक्ति को चाहिए कि किसी अन्य का मोबाइल फोन उसकी अनुमति के बिना इस्तेमाल न करे और अगर अनुमति मिलने पर उपयोग करता है तो उसी हद तक जिस हद तक उसे अनुमति मिली है।
(11) घर में अभिभावक के रहते हुए युवतियों को फोन उठाने न दें:
फोन का ग्यारहवां शिष्टाचार यह है कि घर में अभिभावक के रहते हुए युवतियों को फोन उठाने न दिया जाए, इस से बच्चियों में ग़लत रास्ते पर लगने की संभावना अधिक होती हैं. आप जितने भी सोचें कि हमारी बच्ची नेक और पवित्र है लेकिन उसका क्या करेंगे कि आज शैतान के चेले हर तरफ दनदनाते फिर रहे हैं. स्तित्व का खून हो रहा है. ऐसी स्थिति में हम कैसे संतुष्ट हो सकते हैं, बल्कि पुरुषों की उपस्थिति में महिलायें फोन न उठायें. हाँ! आवश्यकतानुसार फोन उठाया जा सकता है इसमें किसी का मतभेद नहीं लेकिन इस संबंध में ध्यान रखने की बात यह है कि महिलाएं फोन उठाते समय धीमे और मीठे स्वर में बात न करें ऐसा न हो कि बीमार दिल इंसान किसी तरह का गलत विचार अपने मन में बैठा ले. ज़रा गौर कीजिए कि अल्लाह ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नियों को आदेश दिया कि जब वह दूसरों से बात करें तो दबी ज़बान में बात न करें
يَا نِسَاءَ النَّبِيِّ لَسْتُنَّ كَأَحَدٍ مِّنَ النِّسَاءِ ۚ إِنِ اتَّقَيْتُنَّ فَلَا تَخْضَعْنَ بِالْقَوْلِ فَيَطْمَعَ الَّذِي فِي قَلْبِهِ مَرَضٌ وَقُلْنَ قَوْلًا مَّعْرُوفًا سورة الأحزاب 32
“ऐ नबी की स्त्रियों! तुम सामान्य स्त्रियों में से किसी की तरह नहीं हो, यदि तुम अल्लाह का डर रखो। अतः तुम्हारी बातों में लोच न हो कि वह व्यक्ति जिसके दिल में रोग है, वह लालच में पड़ जाए। तुम सामान्य रूप से बात करो” (सूरः अल-अहज़ाब 32)
हालांकि उनके हाल परविचार कर के देखें कि वह नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के युग में थीं और लोगों के लिए माँ की हैसियत रखती थीं, उनके प्रति किसी के दिल में गलत विचार बैठ नहीं सकता था….फिर भी यह आदेश दिया जा रहा है. अब इसी से आप अनुमान लगा सकते हैं कि हमारी बहनें और बेटियाँ इस आदेश की कितनी मुख़ातब हो सकती हैं. हमें यह विश्वास करना चाहिए कि शरीयत असल में फितरत की आवाज़ है, स्वाभाविक रूप में महिला की आवाज में आकर्षणपाया जात है….इस लिए महिलाओं को यह आदेश दिया गया कि पुरुषों से बातचीत करते समय ऐसा स्वर अपनाया जाए जिस में नज़ाकत और नरमी के बजाय सख्ती और रुखापन हो ताकि किसी बुरी भावना रखने वाले के दिल में बुरा विचार पैदा न हो।
उसी तरह चेतना की आयु तक पहुँचने से पहले बच्चों को भी फोन उठाने न दिया जाए. अगर बच्चे चालाक भी हैं तब भी पहले उन्हें फोन उठाने का तरीक़ा सिखायें, उसके बाद उन्हें उठाने की अनुमति दें. कभी कभी ऐसा होता है कि आप किसी महत्वपूर्ण आवश्यकता से किसी के यहां फोन करें, फोन उठाने वाला घर की बच्चा होगा जो अपने अंदाज में बात करता है. मिनटों के बाद बात समझ पाता है और कभी वह भी नहीं समझ पाता। कुछ बुरे स्वभाव के लोग बच्चों से रहस्य की बातें भी जानने लगते हैं. जाहिर है कि इसका एक मात्र इलाज यही है कि बिल्कुल छोटे बच्चों को फोन उठाने न दिया जाए।
(12) अनुमति लिए बिना फून करने वाले की बात रिकॉर्ड न करें:
फोन से संबंधित अंतिम बिंदु यह है कि बातचीत करने वाले की बात रिकॉर्ड करना या मोबाइल की आवाज सब के सामने ऑन कर देना ताकि दूसरे उसे सुनें, गलत है बल्कि यह एक प्रकार का विश्वासघात है. कितने लोगों की आदत होती है कि जब उन्हें कोई फोन करता है तो उसकी आवाज रिकॉर्ड करने लगते हैं या ध्वनि खोल देते हैं ताकि उपस्थितजन उसकी बात सुनें. ऐसा करना सरासर गलत है. कोई बुद्धिमान ऐसा नहीं कर सकता. हाँ अगर बात करने वाले से अनुमति ले ली जाए और बातचीत सब के लिए उपयोगी हो तो ऐसी स्थिति में ध्वनि खोलने में कोई हर्ज नहीं।
अल्लामा डॉ. बकर अबू ज़ैद रहिमहुल्लाह अपनी पुस्तक “अदबुल हातिफ” में लिखते हैं:
لايجوز لمسلم يرعی الامانة ويبغض الخيانة ان يسجل کلام المتکلم دون اذنہ وعلمہ مھما يکن نوع الکلام دينيا او دنيويا
ऐसा मुसलमान जो अमानत की रिआयत करता हो और विश्वासघात को नापसंद करता हो ‘उसके लिए बिल्कुल उचित नहीं कि बात करने वाले की बात को उसकी अनुमति और इसकी जानकारी के बिना रिकॉर्ड कर ले चाहे बात जिस तरह की हो. दुनियावी हो या दीनी, जैसे फतावा और ज्ञान की बातें आदि “
प्रिय पाठको! मोबाइल फोन के शिष्टाचार के बारे में यह थीं कुछ बातें!! जिन्हें संक्षिप्त में हम ने वर्णन किया है। अंत में अल्लाह से दुआ है कि वह हमें जीवन के हर मामले में इस्लामी जीवन व्यवस्था को अपनाने की तौफीक़ प्रदान करे। आमीन
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