इस्लाम में मामलात कभी माफ नहीं होते जब तक कि उसकी अदाएगी न कर दी जाए

इस्लाम में मामलात कभी माफ नहीं होते जब तक कि उन्हें पूरा न कर दिया जाए

अगर मैं आपसे कहूं कि एक आदमी है जो मेहनत से कमाता है, अपनी कमाई को जमा करके रखता है, जब अच्छे खासे पैसे जमा हो जाते हैं तो उसे ले जाकर कचड़े के डिब्बा में डाल देता है, जरा गौर कीजिए ऐसे इंसान के सम्बन्ध में आप क्या सोचेंगे ? यही ना कि वह पागल है जो अपनी मेहनत की कमाई कचड़े के डिब्बा में डाल दे रहा है, जी हाँ! मेहनत की कमाई को कचड़े के डिब्बा में डाल देना पागलपन ही है, लेकिन खेद की बात यह है कि हमारी अधिकता इस से बढ़कर पागलपन का प्रदर्शन कर रही है, वह कैसे? वह इस तरह कि हम नमाज़ पढ़ते हैं, रोज़े रखते हैं, दान देते हैं, और बहुत सारे नेकियों के काम करते हैं लेकिन दूसरों की ग़ीबत करके, दूसरों की संपत्ति हड़प कर, दूसरों की इज्जत पर हमला करके, दूसरों को गालियां दे कर और दूसरों पर अत्याचार करके हम अपनी सारी नेकियाँ बर्बाद कर लेते हैं, कल महा प्रलय के दिन जब हम अल्लाह के पास उपस्थित होंगे तो जिन जिन लोगों का अधिकार मारा था सब हमारे पास दावा लेकर आ जाएंगे, वहां केवल हमारे पास नेकियाँ होंगी जिन में से अपनी मां और पत्नी को भी एक नेकी भी देने के लिए तैयार नहीं होंगे, लेकिन दावेदार हैं कि हमारी सारी नेकियाँ छीन ले जाएंगे, जब हमारी सारी नेकियाँ समाप्त हो जाएंगी और अभी भी दावेदार बाक़ी रह जाएंगे तो दावेदारों के पाप लेकर हमारे सिर पर थोप दिए जाएंगे और फिर हमें नरक में डाल दिया जाएगा।

यह बात मैं अपनी तरफ से नहीं कह रहा हूँ बल्कि सही मुस्लिम की रिवायत है अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक दिन अपने साथियों से पूछा:

 

أتدرون ما المفلِسُ ؟ قالواالمفلِسُ فينا من لا درهمَ له ولا متاعَ . فقال : إنَّ المفلسَ من أمَّتي ، يأتي يومَ القيامةِ بصلاةٍ وصيامٍ وزكاةٍ ، ويأتي قد شتم هذا ، وقذف هذا ، وأكل مالَ هذا ، وسفك دمَ هذا ، وضرب هذا . فيُعطَى هذا من حسناتِه وهذا من حسناتِه . فإن فَنِيَتْ حسناتُه ، قبل أن يقضيَ ما عليه ، أخذ من خطاياهم فطُرِحت عليه . ثمَّ طُرِح في النَّارِ   صحيح مسلم 2581

क्या तुम जानते हो दरिद्र किसे कहते हैं? साथी ने कहा: हमारे बीच दरिद्र वह माना जाता है जिसके पास दिरहम और दीनार न हो, आप ने फरमाया: कल क़यामत के दिन दरिद्र वह होगा जो नमाज़, रोज़ा, ज़कात के साथ आएगा लेकिन किसी को गाली दी होगी, किसी पर आरोप लगाया होगा, किसी का माल खाया होगा, किसी का खून बहाया होगा, और किसी को मारा होगा, अतः उसके दावेदारों को उसकी नेकियाँ दे दी जाएंगी, जब उसकी नेकियाँ खत्म हो जाएंगी तो दावेदारों के पाप लेकर उसके सिर पर डाल दिय जाएंगे और फिर उसे जहन्नम में डाल दिया जाएगा।

अल्लाह अगर चाहे तो अपना अधिकार माफ कर दे लेकिन इंसानों के साथ किसी तरह की भी ज़्यादती हुई तो कल क़यामत के दिन उसकी माफी नहीं, इसके बदले में हमें दावेदारों को अपनी नेकियाँ देनी होंगी, जिस दिन एक नेकी के लिए लोग तरस रहे होंगे। कितने घाटे का सौदा होगा वह।

सहिहुत्तरग़ीब की रिवायत है, हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि एक व्यक्ति ने कहा:

قال رجل يا رسول الله إن فلانة يذكر من كثرة صلاتها وصدقتها وصيامها غير أنها تؤذي جيرانها بلسانها قالهي في النار  يا رسول الله ! فإن فلانة يذكر من قلة صيامها [ وصدقتها ] وصلاتها ، وإنها تتصدق بالأثوار من الإقط ، ولا تؤذي جيرانها [ بلسانها ] . قال  هي في الجنة صحيح الترغيب 2560

 

ऐ अल्लाह के रसूल! एक औरत जो दिन में हमेशा रोज़ा रखती है और रात में तहज्जुद पढ़ती है, लेकिन अपने पड़ोसियों को पष्ट पहुंचाती है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: वह नरक में जाएगी। उस व्यक्ति ने फिर कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! एक दूसरी औरत है जो फर्ज़ नमाज़ें पढ़ती और फर्ज़ रोज़े रखती है और पनीर के टुकड़े के समान दान ख़ैरात करती है, लेकिन वह अपने पड़ोसी को नुकसान नहीं पहुंचाती। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: वह जन्नती है।

जरा कल्पना कीजिए कि एक महिला तहज्जुद गुज़ार है, रोज़े रखती है लेकिन पड़ोसियों को कष्ट पहुंचाती है तो जहन्नम की निवासी ठहरती है जबकि दूसरी महिला नमाज़ रोज़े में कोई विशेष प्रसिद्धि नहीं रखती है, फराइज़ का पालन कर लेती है लेकिन पड़ोसियों को कष्ट नहीं पहुंचाती तो वह इस खूबी के कारण वह जन्नत की हक़दार ठहरती है।

मुसलमानों ने जब अपना मामला ठीक रखा था तो वह पूरी दुनिया पर छा गए थे, जहां गए उनके किरदार से लोग प्रभावित हुए और यह कहने पर मजबूर हुए कि जिस धर्म के मानने वाले ऐसे होंगे वह धर्म कैसा होगा, इस तरह उन्हों ने इस्लाम को गले लगा लिया, अल्लाह का शुक्र है कि आज भी IPC का सर्वेक्षण बताता है कि कुवैत में जो लोग इस्लाम स्वीकार करते हैं उन में अधिकता ऐसे लोगों की होती है जो मुसलमानों के मामले से प्रभावित होने के कारण इस्लाम में आते हैं। हमारे एक हमारे एक नव-मुस्लिम भाई डा. मुहम्मद सामी जी हैं जो दंत चिकित्सक हैं, कुवैत की मिनिस्ट्री ऑफ हैल्थ में काम करते हैं, उन्होंने कुवैत के डाक्टरस के अच्छे चरित्र से प्रभावित होकर ही इस्लाम का अध्ययन शुरू किया, यहाँ तक कि उन्हों ने इस्लाम स्वीकार कर लिया।

 

एक समय था कि गैर-मुस्लिम भी मुसलमानों के मामलों से प्रभावित होते थे, मुसलमानों के पड़ोस में जो मकान होते मुसलमानों के अच्छे मामलों की वजह से उनकी कीमतें बढ़ जाया करती थीं, अब्दुल्ला बिन मुबारक रहमतुल्लाह अलैह के पड़ोस में एक यहूदी रहता था, यहूदी ने अपना मकान बेचना चाहा, एक आदमी ने पूछा: कितने में बीचौगे, कहने लगा कि मैं दो हजार दीनार में बीचूंगा, खरीदार ने कहा कि इस क्षेत्र में इस तरह के मकान की कीमत अधिकतम एक हजार दीनार होती है, जबकि तुम दो हज़ार बता रहे हो। यहूदी कहने लगा कि जी हां ठीक है एक हजार दीनार तो मेरे घर की कीमत है और एक हजार दीनार अब्दुल्लाह बिन मुबारक का पड़ोस होने की कीमत है।

 

सुब्हानल्लाह! कैसे थे वे लोग, लेकिन आज स्थिति यह है कि कुछ क्षेत्रों में मुसलमान मकान लेने जाते हैं तो उन्हें कोई मकान किराया भी देने के लिए तैयार नहीं होता। क्यों कि कुछ मुसलमानों का चरित्र इतना गिर चुका है कि पड़ोसी उनसे और उनके बच्चों से तंग रहते हैं।

हमारे एक नव-मुस्लिम भाई हैं जिनका नाम है इस्माइल, इसाई थे, एक दिन उन्हें अहमद दीदात की कुछ किताबें मिलीं जिनसे प्रभावित होकर इस्लाम स्वीकार किया, इस्लाम लाने के बाद इस्लाम में ऐसे जमे कि कहते हैं: इस्लाम लाने के बाद से अब तक मेरी तहज्जुद की नमाज़ नहीं छोटी, कुरआन से उनका बहुत गहरा स्नेह है, इस्लाम स्वीकार करने से पहले ही उनकी आदत बन गई थी कि कुरआन सुने बिना उन्हें नींद ही नहीं आती थी, वह अपनी पत्नी के साथ रहते थे, लाख कहने के बावजूद वे मानने को तैयार नहीं थी चार साल बाद वह इस्लाम स्वीकार करने के लिए तैयार हुई तो हमने उन्हें कमला पढ़ाया और अभी इस्लाम पर दृढ़ हैं अल-हम्दुलिल्लाह लेकिन क्या आप जानते हैं कि चार साल तक इस्लाम से क्यों रुकी रहीं? वह खुद कहती हैं कि “मैंने इस्लाम की सच्चाई को उसी समय जान लिया था जब कि मेरे पति ने इस्लाम स्वीकार किया था कि मैं उनके अंदर बहुत बड़ा बदलाव देख रही थी, पहले बहुत गुस्सा करते थे इस्लाम स्वीकार करने के बाद नरम हो गए, और मेरे साथ उनके मामले भी बड़े अच्छे हो गए, लेकिन उसके बावजूद अभी तक मैं इस्लाम से दूर इसलिए थी कि मेरे पिता की भूमि मेरे एक मुस्लिम पड़ोसी ने दबा लिया थी और गलत तरीके से अपने नाम सरकारी कागजात बना लिया था, मैं अज्ञानता में समझती थी कि सारे मुसलमान धोखेबाज होते हैं, कभी कभी तो मैं अपने पति पर भी तरस खाती थी, लेकिन पिछले रमज़ान में उसे गलती का एहसास हुआ अंततः मेरे पिता के पास आकर माफी मांगी और अनुरोध किया कि चलें हम जमीन आपके नाम कर देते हैं, इस तरह वह पृथ्वी मेरे पिता के क़ब्ज़े में आ गई, उसके इसी प्रक्रिया ने मुझे इतने दिनों तक इस्लाम से दूर रखा था। “

 

अल्लाहु अकबर! इस घटना को सुनने के बाद जरा दिल को टटोलें और मन से पूछें कि क्या ऐसा तो नहीं कि हम भी कितने लोगों की हिदायत के रास्ते में बाधा बने हुए हैं। हमें अपनी ज़बान की समीक्षा करनी चाहिए कि ऐसा तो नहीं कि हम किसी के दिल को चोट पहुंचा रहे हैं, हमें अपने मामलों पर विचार करना चाहिए कि ऐसा तो नहीं कि हमने किसी का अधिकार दबा रखा है, ऐसा तो नहीं कि किसी पर हम अत्याचार कर रहे हैं। आप अपनी कार किसी वाहन के पीछे डाल देते हैं और जाकर कहीं बैठ जाते हैं, घंटा दो घंटे तक वह बेचारा आपका इंतजार करता है, क्या यह अच्छा मामला है ? नहीं और बिल्कुल नहीं। आपके पास दुर्व्यवहार के कई किस्से हो सकते हैं, लेकिन हम आपके सामने अच्छे व्यवहार की एक घटना  प्रस्तुत करना चाहेंगे।

अबून्नहार नाम के एक कुवती हैं, 80 साल से अधिक उम्र होगी, कुछ सालों पहले हमारे साथ उमरा के लिए गये थे, हम बस द्वारा उमरा के लिए जा रहे थे, हममें अधिकतर लोग भारती और पाकिस्तान के थे, हमने देखा कि यह 80 वर्षीय कुवैती हर जगह बक़्क़ाले में उतरता है, सभी के लिए जूस और पानी खरीदता है और अपने सिर पर लाद कर लाता है और प्यार से सब्हों में वितरित कर रहा है, जब कभी खाने के लिए उतरते उसकी इच्छा होती कि सभी लोग उसी के साथ खाना खायें। कभी किसी गरीब को देखता तो छिप कर उसके हाथ में कुछ पैसे डाल देता, यात्रा में परेशानी होती है और आदमी कभी कभी झंझलाहट में आ जाता है लेकिन हमने उसके अंदर थकान नाम की कोई चीज नहीं देखी, जब किसी में झंझलाहट देखते उसके पास जाते और प्यार से उसे समझाते कि हुए उसे अरबी शैली में कहतेः तव्विल बालक, धीरज रखें, सीना विशाल रखें। पुन्य मिलेगा।

 

अबून्नहार के नेक चरित्र और अच्चे मामले को मैं कभी भूल नहीं सकता, जो आम लोगों के साथ उमरा करने जाता है इसलिए ताकि उसे सेवा करने का अवसर मिले।

प्रिय पाठक! हम सब को अबून्नहार के जैसे बनने की कोशिश करनी चाहिए। अल्लाह सर्वशक्तिमान हम सब को इसकी तौफ़ीक़ प्रदान करे, आमीन

 

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