नवमुस्लिमनवमुस्लिम भाईयों से सम्बन्धिक बहुत सारे दीन अहकाम और मसाइल हैं जिन पर चर्चा करने की आवश्यकता है ताकि हमारे उन भाइयों को अपने मसाइल से सम्बन्धित सही जानकारी प्राप्त हो सके। इसी उद्देश्य के अंतर्गत हम निम्न में कुछ मसाइल प्रश्न और उत्तर के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, आशा है कि यह नवमुस्लिम भाईयों के लिए लाभदायक सिद्ध होंगेः

प्रश्नः इस्लाम में दाखिल होने का करीक़ा क्या है ?

उत्तरः कल्मा शहादत “अश्हदु अल्ला इलाह इल्लल्लाहु व अश्हदु अन्न मुहम्मदन रसूलुल्लाह” ( मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई सही इबादत के योग्य नहीं और मैं इस बात की गवाही देता हूं कि मुहम्मद सल्ल. अल्लाह के संदेष्टा हैं।) को समझ कर उसकी गवाही देने से एक व्यक्ति मुसलमान बन जाता है।

प्रश्नः क्या सार्वजनकि स्थल पर इस्लाम स्वीकार करना शर्त है ?

उत्तरः नहीं! लोगों के समक्ष इस्लाम स्वीकार करने की घोषणा इस्लाम के सही होने की शर्त नहीं है। यदि कोई व्यक्ति कलेम-ए-शहादत के अर्थ को समझते हुए हृदय के समर्थन के साथ ज़बान से उसकी गवाही देता है तो उसका इस्लाम सही होगा परन्तु लोगों के समक्ष कलेम-ए-शहादत पढ़ाने का लक्ष्य यह होता है कि लोग उस के साथ मुस्लिम का सा व्यवहार करें, और उस के इस्लाम पर जमे रहने की दुआ करें।

 प्रश्नः इस्लाम स्वीकार करने के बाद अपने इस्लाम के गुप्त रखने क्या हुक्म है ?

उत्तरः यदि इस्लाम स्वीकार करने को गुप्त रखने में कोई अच्छा कारण है तब तो ठीक है जैसा कि मक्का में मुसलमान इस्लाम के आरंभिक समय में अपने इस्लाम को गुप्त रखते थे। यदि कोई महत्वपूर्ण कारण नही हो तो अपने इस्लाम को सब पर प्रकट कर दें ताकि आप के साथ मुसलमाने के जैसा व्यवहार किया जाए।

प्रश्नः किसी मुसलमान को कुफ्र करने पर मज्बूर किया जाए तो इस का हुक्म किया है ?

यदि किसी मुस्लिम व्यक्ति को किसी ने कुफ्रिया बात कहने पर मज़बूर कर दिया और उसने न चाहते हुए भी जीभ से कुफ्र किया और उसका हृदय ईमान पर संतुष्ट है तो कोई बात नही, वह अल्लाह से क्षमा मांगे और नेक कार्य करे जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान है,

مَن كَفَرَ بِاللّهِ مِن بَعْدِ إيمَانِهِ إِلاَّ مَنْ أُكْرِهَ وَقَلْبُهُ مُطْمَئِنٌّ بِالإِيمَانِ وَلَكِن مَّن شَرَحَ بِالْكُفْرِ صَدْرًا فَعَلَيْهِمْ غَضَبٌ مِّنَ اللّهِ وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ النحل:106

 जिस किसी ने अपने ईमान के पश्चात अल्लाह के साथ कुफ़्र किया -सिवाय उसके जो इसके लिए विवश कर दिया गया हो और दिल उसका ईमान पर सन्तुष्ट हो – बल्कि वह जिसने सीना कुफ़्र के लिए खोल दिया हो, तो ऐसे लोगो पर अल्लाह का प्रकोप है और उनके लिए बड़ी यातना है। (सूरः नहल 106)

प्रश्नः क्या इस्लाम स्वीकार करने के बाद स्नान करना अनिवार्य है ?

उत्तरः अल मौसूआ अल-फिक़हिया में आया हैः

काफिर जब इस्लाम स्वीकार करे तो मालकिया और हनाबला के पास स्नान करना आवश्यक है,क्यों कि अबू हुरैरा रज़ि. से रिवायत है कि सुमामा बिन असाल ने जब इस्लाम स्वीकार किया तो आप सल्ल. ने कहाः इसे बनू फ़लाँ के बाग़ीचे में ले जाओ और उसे स्नान करने का आदेश दो।  उसी प्रकार क़ैस बिन आसिम ने जब इस्लाम स्वीकार किया तो अल्लाह के रसूल सल्ल. ने उन्हें पानी और बैर के पत्ते से स्नान करने का आदेश दिया।

इस लिए कि गैर मुस्लिम आमतौर पर जनाबत से खाली नहीं होता अतः गुमान को हक़ीक़त के स्थान पर रख दिया गया जैसे साना और दो गुप्तांग का मिलना है (कि इन से स्नान अनिवार्य होता है)

जब कि हनफिया और शाफइया का कहना है कि गैरमुस्लिम जब इस्लाम स्वीकार करे और वह जुनुबी न हो अर्थात् उसे स्नान करने की ज़रूरत न हो तो उसका स्नान करना अनिवार्य नहीं परन्तु उत्तम है। क्यों कि बहुत से लोगों ने इस्लाम स्वीकार किया लेकिन आप सल्ल. ने सब को स्नान करने का आदेश नहीं दिया। हाँ जब गैरमुस्लिम इस्लाम स्वीकार करे और उसे स्नान करने की ज़रूरत हो तो उसके लिए स्नान करना ज़रूरी है।  (अल मौसूआ अल-फिक़हिया 31/205-206)

शैख़ इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह कहते हैं कि (गैर मुस्लिम जब इस्लाम स्वीकार करता है तो) ज्यादा उचित है कि स्नान कर ले। अश्श्रहुल मुमतिअ 1/397)

 

प्रश्नः क्या नव मुस्लिम का खतना करना आवश्यक है और उसका इस्लाम सही होने के लिए शर्त है ?

उत्तरः खतना करना अन्बिया (अलैहिस्सलाम) की सुन्नत है और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने भी खतना करने का आदेश दिया है। इबराहीम (अलैहिस्सलाम) ने 80 वर्ष के होने के बाद खतना करवाया था।

हाँ एक महत्वपूर्ण बात समझने की है कि जो लोग इस्लाम स्वीकार करते हैं उनके सामने पहली फुर्सत में ख़त्ना का विषय नहीं छेड़ना चाहिए क्यों कि सम्भव है कि ख़त्ना का नाम सुन कर वे इस्लाम से फिर जाए, जब उनका ईमान पक्का हो जाएगा तो वह स्वयं बोलेंगे कि हमें ख़त्ना कराना है। हमारा निजी अनुभव है कि हमने किसी नव-मुस्लिम को इस्लाम स्वीकार करने के बाद ख़त्ना के लिए नहीं कहा, परन्तु धीरे धीरे इस्लाम की शिक्षा लेते लेते स्वयं वह ख़त्ना के लिए तैयार हो जाता है।  

प्रश्नः क्या इस्लाम स्वीकार करने के बाद गुस्ल करना नमाज के सही होने के लिए शर्त है ?

उत्तरः यदि किसी ने इस्लाम स्वीकार किया और वह अभी अपवित्रता की स्थिति में था चाहे जनाबत के कारण हो अथवा महिलायें मासिक चक्र या बच्चे की पैजाइश के बाद के रक्तपात से पाक हुने के बाद इस्लाम स्वीकार की  हों, तो ऐसी स्थिति में गुस्ल करना अनिवार्य है। यदि ऐसी कोई परिस्थिति न हो और वह पवित्र समझा जाएगा, अब वह वुज़ू कर के सब के साथ नमाज़ अदा कर सकता है।

 प्रश्नः उन नमाज़ों का क्या हक्म होगा जो कुफ्र की हालत में छूट गईं हैं, क्या उनका पूरा करना ज़रूरी है ?

उत्तरः मुस्लिम विद्वान इस बात पर सहमत हैं कि जब कोई व्यक्ति इस्लाम स्वीकार करता है तो उसके पूर्व के सारे कर्म क्षमा कर दिए जाते हैं। अल्लाह ने फरमायाः

قُل لِّلَّذِينَ كَفَرُوا إِن يَنتَهُوا يُغْفَرْ لَهُم مَّا قَدْ سَلَفَ وَإِن يَعُودُوا فَقَدْ مَضَتْ سُنَّتُ الْأَوَّلِينَ سورة الأنفال 38

” उन इनकार करनेवालो से कह दो कि वे यदि बाज़ आ जाएँ तो जो कुछ हो चुका, उसे क्षमा कर दिया जाएगा, किन्तु यदि वे फिर भी वहीं करेंगे तो पूर्ववर्ती लोगों के सिलसिले में जो रीति अपनाई गई वह सामने से गुज़र चुकी है।” (सूरः अल-अनफाल 38)

उसी प्रकार अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीस है , हज़रत अमर बिन आस रज़ियल्लाहु अन्हु ने जब इस्लाम स्वीकार करने का संकल्प किया तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से यह शर्त रखी कि मेरे पिछले पाप क्षमा कर दिए जाएं, तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः   

 أمَا علِمتَ أنَّ الإِسلامَ يَهْدِمُ ما كان قَبلَهُ صحيح الجامع 1329

 ऐ अमर! क्या तुझे पता नहीं कि इस्लाम पहले के पापों को समाप्त कर देता है।

प्रश्नः यदि कोई व्यक्ति इस्लाम स्वीकार करने के बाद कुछ नमाजें अज्ञानता के कारण छोड़ देता है तो उसका क्या हुक्म है?

उत्तरः यदि कोई अज्ञानता के कारण इस्लाम स्वीकार करने के बाद पांस समय की नमाज़ें न पढ़ सका, तो कोई बात नहीं, जब उसे ज्ञान आए उसी समय से नमाज़ की पाबंदी शुरू कर देनी चाहिए, यहाँ तक कि यदि कोई जान बूझ कर भी नमाज़ छोड़ दिया था तो उसे चाहिए कि सच्ची तौबा करे और नमाज की पाबंदी आरंभ कर दे। छुटी हुई नमाज़ों को दुहराने की आवश्यकता नहीं।

प्रश्नः यदि कोई गैर मुस्लिम नमाज़ पढ़ना शुरू कर दे तो क्या मात्र  नमाज़ पढ़ने के कारण उसे मुसलमान माना जाऐगा यघपि उसने कलमा शहादत की गवाही न दी हो ?

उत्तरः उसे मुसलमान नहीं माना जाएगा और उसकी नमाज़ सही नहीं होगी, इस लिए कि नमाज़ के सही होने की शर्तो में सब से पहली शर्त इस्लाम है, इस लिए मुसलमान होने के लिए सब से पहले उसके लिए कलमा शहादत की गवाही देना आवश्यक है।

 

प्रश्नः क्या किसी गैर मुस्लिम को मस्जिद में दाखिल होने की अनुमति दी जा सकती है ?    

उत्तरः मस्जिदे हराम (मक्का) में किसी गैर मुस्लिम के दाखिल होने की अनुमति नहीं है, अल्लाह का आदेश है

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا إِنَّمَا المُشْرِكُونَ نَجَسٌ فَلَا يَقْرَبُوا المَسْجِدَ الحَرَامَ بَعْدَ عَامِهِمْ هَذَا وَإِنْ خِفْتُمْ عَيْلَةً فَسَوْفَ يُغْنِيكُمُ اللهُ مِنْ فَضْلِهِ إِنْ شَاءَ إِنَّ اللهَ عَلِيمٌ حَكِيمٌ  التوبة:28  

ऐ ईमान लानेवालो! मुशरिक तो बस अपवित्र ही है। अतः इस वर्ष के पश्चात वे मस्जिदे हराम के पास न आएँ। और यदि तुम्हें निर्धनता का भय हो तो आगे यदि अल्लाह चाहेगा तो तुम्हें अपने अनुग्रह से समृद्ध कर देगा। निश्चय ही अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, अत्यन्त तत्वदर्शी है। (सूरः अत्तौबा 28)  

मस्जिदे हराम के अतिरिक्त अन्य मस्जिदों में ग़ैर-मुस्लिम दाखिल हो सकते हैं, यहाँ तक कि मस्जिदे नबवी में भी। अल्लाह रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से मिलने के लिए गैर-मुस्लिम मदीना आते थे और मस्जिदे नबवी में आप से मिलते थे। कितने वफ़दों को अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने  मस्जिद नबवी में ठहराया था। (जारी है) 

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