एक आदमी ने हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा को गाली दी, जब वह चुप हो गया तो इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा ने अपने गुलाम इकरमा से कहा इकरमा! देखो, इस आदमी को कोई जरूरत तो नहीं है अगर है तो पूरी कर दी जाए – यह सुनकर उस व्यक्ति ने अपना सिर झुका लिया और शर्मिंदा हुआ – (अलमुस्तत्रफ 201)
किसी भी मामले में गुस्सा हो जाना एक बुरी आदत है जिसमें हम में से अधिकांश लोग ग्रस्त हैं, इस से मतभेद पैदा होता है, संबंध कटता है, वैवाहिक जीवन का हनन होता है और कभी तलाक द्वारा यह बंधन टूट भी जाता है, इसे के कारण केस और मुकदमें भी झेलने पड़ते हैं। क्रोध हर बुराई का स्रोत है, यह बुरी आदत है जिस पर शैतान इनसान को उभारता है, क्रोध करने वाला नशाखोर के समान होता है जिसे कुछ पता नहीं होता कि वह क्या कर रहा है और क्या बोल रहा है फिर बाद में अपने किए पर पछताता है।
मुख्य रूप में गुस्सा दो तरीक़े का होता है, एक वह जो काबिले तारीफ है और जो अल्लाह के लिए होता है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जीवन में हमारे लिए नमूना है, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब शरीयत के खिलाफ कोई काम देखते तो ग़ज़बनाक हो जाते, आपके चेहरे मुबारक की स्थिति बदलने लगती थी, सही बुखारी की रिवायत है, एक बार अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास एक रेशमी वस्त्र दान आया, हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हुं ने उसे पहन लिया, यह देख कर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का पवित्र चेहरा क्रोध से लाल हो गया कि उन्होंने रेशमी कपड़े पहन ली थी जो पुरुषों पर हराम है।
उसी तरह सहीह मुस्लिम की रिवायत है, हज़रत आईशा रज़ियल्लाहु अन्हा बयान करती हैं कि एक दिन अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मेरे पास आय, उस समय मेरे पास एक आदमी बैठा हुआ था, यह देखकर आप पर सख्त बीता, मैं ने उनके पवित्र चेहरे पर गुस्सा का असर देख कर कहा: यह मेरे दूध शरीक भाई हैं, आप ने फरमाया: “ठीक से देख लो कि तुम्हारा दूध शरीक भाई कौन है कि रिज़ाअत बचपन में दूध पीने से ही साबित होती है”.
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक बार सख्त गुस्सा हुए यहां तक कि मिंबर पर चढ़ कर उसे बयान किया, सहीह मुस्लिम की रिवायत है, हज़रत अबू मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि एक आदमी अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और पूछा “मैं सुबह की नमाज़ में अमुक (इमाम) की वजह से देरी करता हूं कि वह नमाज़ में किरात बहुत लंबी करते हैं, मैं ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को उस दिन से अधिक ग़ज़बनाक होते कभी नहीं देखा, आपने कहाःऐ लोगो! तुम में कुछ लोग नफरत दिलाने वाले हैं जो कोई भी लोगों की इमामत कराए उसे चाहिए कि नमाज़ लम्बी न करे क्योंकि उसके पीछे बूढ़े, कमज़ोरा और ज़रुरतमंद भी होते हैं।
उसी तरह कुछ लोगों ने जब शरीयत की छूट को अपनाने में संकोच किया और तीव्रता को अपनाई तो अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ग़ज़बनाक हो गए, जैसा कि सही मुस्लिम की रिवायत है, हज़रत आईशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने किसी मामले में छूट दी तो कुछ लोगों ने उसे अपनाने से गुरेज़ किया, जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इसकी सूचना मिली तो आपने कहाः “क्या बात है कि कुछ लोग उस चीज़ को अपनाने से मुंह मोड़ रहे हैं जिसमें मुझे छूट दी गई है, अल्लाह की क़सम! मैं उन में सबसे अधिक अल्लाह को जानने वाला हूं और सबसे अधिक अल्लाह का डर रखने वाला हूँ “.
पता यह चला है कि यदि कहीं पर शरीयत का हनन हो रहा है तब गुस्सा होना जाइज़ है बल्कि आवश्यक है।
गुस्सा की दूसरी क़िस्म वह गुस्सा है जो निंदनीय है, जो अप्रिय है, और यह गुस्सा में सीमा को पार करना है यहां तक कि मनुष्य बुद्धि, धर्म, सज्जनता के दायरे से निकल जाए, यही गुस्सा एक मोमिन की शान के खिलाफ है. सहीह बुखारी की रिवायत है, एक आदमी ने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे वसीयत करें, आपने कहाः “ला तग़ज़ब” आपने इसे कई बार दोहराया और कहा “ला तग़ज़ब”. अर्थात् गुस्सा मत करो. (सही बुखारी 6116)
एक अन्य व्यक्ति ने आकर पूछाः ऐ अल्लाह के रसूल! कौन सी चीज़ अल्लाह के क्रोध से दूर रख सकती है? आप ने कहा ला तग़ज़ब. अर्थात् गुस्सा मत करो. (सही इब्न हबान 296)
पता यह चला कि क्रोध हर बुराई का स्रोत है. इसलिए अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहिमहुल्लाह से कहा गया: आप अच्छे आचरण को एक वाक्य में बयान करें, तो आप ने फरमाया: अच्छा आचरण क्रोध छोड़ने का नाम है।
हज़रत अबु हुरैरा से रिवायत है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: “पहलवान वह नहीं है जो किसी को पछाड़ दे लेकिन असली पहलवान वह है जो क्रोध के समय अपने नफ्स पर नियंत्रण रखे” . (सहीह बुखारी 6114, सहीह मुस्लिम 2609)
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