आज हम एक ऐसी खतरनाक बीमारी के बारे में बात करेंगे जो मानव समाज की निराशाजनक और लाइलाज बीमारी समझी जाती है, यह वह खतरनाक बीमारी है जिसे हम कैंसर के नाम से जानते हैं। चार फरवरी को पूरी दुनिया विश्व कैंसर दिवस मनाती है, और इस दिन कैंसर के कारण, उसकी खतरनाकी और उससे बचने के संसाधनों पर चर्चा की जाती, विभिन्न कांफरेंसेज़, कार्यशालायें, वर्ता और कार्यक्रम आयोजित होते और सुझाव पास किए जाते हैं। कैंसर क्यों होता है, कैंसर के कारण क्या हैं, इस संबंध में चिकित्सा विज्ञान की क्या प्रगति है, इन बिंदुओं पर हम चर्चा नहीं करेंगे बल्कि हम मात्र कुछ धार्मिक शिक्षायें पेश करेंगे ताकि जो लोग इस बीमारी से सुरक्षित हैं उनके लिए लाभदायक हो सकें और जो लोग इसके शिकार हैं उनके लिए मार्गदर्शक बन सकें।
कैंसर के विभिन्न कारणों में से एक कारण मोटापे पर ध्यान न देना और खाने पीने में संयम का ख़्याल न रखना है, इसी लिए इस्लाम ने व्यायाम पर उभारा और पाँच समय की नमाज़ें व्यायाम का अच्छा स्रोत हैं, साथ ही कम-खाने का आदेश दिया, मुहम्मद सल्ल. के प्रवचनों में आता हैः
ما ملأ آدميٌّ وعاءً شرًّا من بطنٍ، بحسبِ ابنِ آدمَ أكلاتٍ يُقمنَ صُلبَهُ، فإن كان لا محالةَ : فثلُث لطعامِه، وثُلُثٌ لشرابِه وثُلُثٌ لنفَسِه ( سنن الترمذي: 2380
“मनुष्य जिन बर्तनों को भरता है उनमें पेट से अधिक बुरा कोई बर्तन नहीं, आदम की संतान के लिए कुछ लुक़्मे पर्याप्त हैं जिनसे वह अपनी पीठ सीधी रख सके, यदि खाना ही चाहता है तो एक तिहाई में खाना खाए एक तिहाई में पानी पिये और एक तिहाई सांस लेने के लिए रहने दे”। (सुनन तिर्मिज़ी: 2380)
धूम्रपान तथा नशीली चीजों का सेवन करना भी कैंसर का कारण बनता है, इसी लिए इस्लाम ने नशा लाने वाले हर पदार्थ को पूर्ण रूप में वर्जित ठहराया, मुहम्मद सल्ल. ने यह नियम बताया किः
كلُّ مُسكِرٍ خَمرٌ . وَكُلُّ خَمرٍ حرامٌ (صحیح مسلم: 2003
“हर नशीली वस्तु शराब है और प्रत्येक शराब हराम है।” (सही मुस्लिम: 2003)
बहरहाल स्वस्थ और संतुलित भोजन का सेवन न करना, शारीरिक व्यायाम (exercise) पर ध्यान न देना। पर्यावरण प्रदूषण, अपनों से दूरी और depression कैंसर का मुख्य कारण है।
लेकिन जो भाई या बहन कैंसर के शिकार हो चुके हैं, उन्हें मेडिकल इलाज के साथ शरई इलाज पर भी ध्यान देना चाहिए, क्योंकि औषधि का प्रभाव कभी होता है और कभी नहीं होता लेकिन शरई इलाज का लाभ बहरहाल मिलकर रहता है, चाहे जिस तरीके से मिले। नीचे की पंक्तियों में इस बारे में कुछ बातें प्रस्तुत हैं:
आध्यात्मिक उपचार:
अल्लाह की ज़ात से शिफ़ा मिलने का दृढ़ विश्वास:
क्योंकि ईमान और शिफ़ा का परस्पर गहरा संबंध है, हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की ज़ुबानी अल्लाह तआला नें फरमाया:
وإذا مرضت فهو يشفين (سورة الشعراء:80
“जब मैं बीमार होता हूं तो मुझे वही शिफ़ा देता है।” (सूरः अश्शुअरा: 80)
इस आयत में पूरे विश्वास के साथ इब्राहीम अलैहिस्सलाम कह रहे हैं कि शिफ़ा देने वाली महिमा केवल अल्लाह की है, उसके अलावा दुनिया की कोई महिमा शिफा नहीं दे सकती। रोगी का जितना ईमान मजबूत होगा उसी के अनुपात में उसके रोग में कमी आएगी। बीमारी के बाद ही नहीं बल्कि बीमारी का शिकार होने से पहले भी एक भक्त को अल्लाह की ज़ात पर भरोसा रखना चाहिए।
आध्यात्मिक उपचार में दूसरी चीज़ दुआ हैः अल्लाह से शिफ़ा की दुआ करना कठिन रोगों से शिफ़ा पाने का उत्कृष्ट संसाधन है। अल्लाह तआला ने फरमाया:
وَقَالَ رَبُّكُمُ ادْعُونِي أَسْتَجِبْ لَكُمْ (المؤمنون : آية 60
“तुम्हारा रब कहता है: मुझे पुकारो, मैं तुम्हारी दुआयें स्वीकार करूँगा”। (सूरः अल-मुमिनून: आयत 60)
इस तरह जब दास का ईमान मजबूत होता है फ़िर दिल से दुआ निकलती है तो उसे धीरे धीरे शक्ति और स्वास्थ्य प्राप्त होने लगती है।
आध्यात्मिक उपचार में तीसरी चीज़ झाड़ फूंक कराना है, और झाड़ फूंक में तीन शर्तों का पाया जाना अत्यंत आवश्यक है। 1- दम अरबी भाषा में हो या ऐसे शब्द में हो जिसका अर्थ समझ में आता हो। 2- अल्लाह की वाणी अथवा और के नामों और गुणों (अस्मा व सिफ़ात ) द्वारा हो और यह विश्वास रखा जाए कि झाड़ फूंक स्वयं प्रभाव नहीं डालता बल्कि शिफ़ा देने में महज अल्लाह का हाथ होता है। और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारे लिए आदर्श हैं जिन्होंने विभिन्न रोगों में झाड़ फूंक किया है। सही मुस्लिम की रिवायत में सय्यदा आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा बयान करती हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के घर में कोई बीमार होता तो आप उस पर सूरः अल-फ़लक़ और सूरः अन्नास पढ़कर दम करते थे, जब आप मृत्यु के रोग में थे थे और परेशानी ज्यादा हो गई तो मैं इन सूरतों को पढ़कर आपके हाथों को आपके शरीर पर फेरती थी। इस इरादे से कि अपने हाथ मेरे हाथ से अधिक बरकत वाले थे।
आध्यात्मिक उपचार में चौथी चीज दान करना हैः रोगी विशेष रूप में ऐसा रोगी जिसका रोग लाइलाज समझा जाता हो उसे अधिक से अधिक दान करना चाहिए। हज़रत अबू उमामा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
دَاوُوا مَرضاكُمْ بِالصَّدقة ( صحیح الجامع: 3358
“दान के माध्यम से अपने रोगियों का इलाज करो”। (सहीहुल जामिअ़: 3358)
अल्लाह वालों ने हर युग में संकट और बीमारी से बचने के लिए दान किया है और उन्हें शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ भी प्राप्त हुए हैं। इस लिए अगर आप हर तरह के इलाज का अनुभव कर थक चुके हैं तो अब दान द्वारा भी इलाज का अनुभव करें। आपने यूं तो बहुत दान किया होगा, लेकिन अब इस इरादे से दान करें कि अल्लाह हमें फ़लाँ बीमारी से मुक्ति प्रदान करे या हमारे रिश्तेदार को फ़लाँ बीमारी से शिफ़ा दे। अल्लाह ने चाहा तो उस का असर जरूर देखेंगे।
मनोचिकित्साः
दूसरे प्रकार का इलाज मनोचिकित्सा है। रोगी की अयादत के लिए जाना, उसके पास बैठना और उसके ग़म को हल्का करने की कोशिश करना अजीब तरीके से बीमारी में कमी लाने का कारण बनता है। रोगी अपने करीबी रिश्तेदारों की देखभाल और निरक्षण का मोहताज होता है, और जब लोग उसके पास अयादत के लिए जाते हैं और उसके गम में शरीक होते हैं तो उसकी बीमारी हल्की होने लगती है। और इस्लाम ने बीमारों की अयादत पर उभारा है और बीमार पुर्सी का अति महत्व बयान किया है। इसी लिए एक कमजोर हदीस में आता है जिसका अर्थ सही है कि “जब तुम किसी मरीज के पास जाओ तो कुछ लम्बी आयु की बात करके उसका दुख दूर करो क्योंकि यह बातचीत भाग्य को नहीं टालेगी लेकिन उसका दिल खुश हो जाएगा “। (सिलसिलतुल अहादिस अज़्ज़ईफ़ा वल- मौज़ूआः 184)
कैंसर के रोगियों के नाम संदेशः
अंत में उन भाइयों और बहनों के नाम मेरा संदेश होगा जो कैंसर या उस जैसी किसी दूसरी निराशाजनक बीमारी से ग्रस्त हैं, दुनिया से उनकी उम्मीदें कट चुकी हैं, मौत को करीब से देख रहे हैं, बीमारी की सखती तेज से तेजतर होती जा रही है, ऐसे भाइयों और बहनों से हम कहेंगे कि आप इस बीमारी में अल्लाह और उसके रसूल की शुभसूचना स्वीकार करें, कोई भी बीमारी एक मुमिन बंदा के लिए भलाई ही लाती है। सही बुखारी की रिवायत है अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
ما يُصيبُ المُسلِمَ، مِن نَصَبٍ ولا وَصَبٍ، ولا هَمٍّ ولا حُزْنٍ ولا أذًى ولا غَمٍّ، حتى الشَّوْكَةِ يُشاكُها، إلا كَفَّرَ اللهُ بِها مِن خَطاياهُ ( صحیح البخاری: 5641
“मुसलमान को कोई बीमारी, दर्द, थकान, पीड़ा, चिंता या आज़माइज़ आदि आती है यहाँ तक कि कांटा भी चुभ जाता है तो उसके बदले अल्लाह उसके पाप क्षमा कर देता है”। (सही बखारी: 5641)
और सुनन अबी दाऊद की रिवायत है, उम्मुल अला रज़ियल्लाहु अन्हा बयान करती हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्ल.) मेरी बीमारी की हालत में मेरी अयादत के लिए आए तो आपने मुझसे कहा:
أَبشِري يا أمَّ العلاءِ ! فإنَّ مرضَ المسلمِ يُذهِبُ اللهُ به خطاياه كما تُذهِبُ النَّارُ خبَثَ الذَّهبِ والفضةِ .( صحیح الترغیب: 3427
“उम्मि अला! तुम्हें सुसमाचार हो, क्योंकि मुसलमान की बीमारी के कारण अल्लाह उसके पापों को वैसे ही समाप्त कर देता है जैसे आग सोना और चांदी के मैल कुचैल को दूर कर देती है।” (सहीहुत्तरग़ीब: 3427)
कैंसर के मरीज तो अल्लाह का प्रिय होता है क्योंकि हमारे नबी सल्ल. ने कहा:
إنَّ عِظمَ الجزاءِ مع عِظمِ البلاءِ ، وإنَّ اللهَ إذا أحبَّ قومًا ابتَلاهم ، (سنن الترمذي: 2396
यानी जितनी बड़ी मुसीबत होगी उतना ही बड़ा इनाम प्राप्त होगा, अल्लाह दास से जितना प्यार करता है उतनी ही उसे आज़माता है। (सुनन अत्तिर्मिज़ी: 2396)
इसलिए हमें समझ लेना चाहिए कि अल्लाह तआला हमें प्यार करता है और हमें आज़माकरअपना अंतरंग बनाना चाहता है। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
“अल्लाह जिसके साथ भलाई का इरादा करता है उसे मुसीबत में गिरफ्तार कर देता है।” (सही बुख़ारीः 5645)
गोया कि आपका आपदा झेलना आपके लिए अच्छा फाल है, अल्लाह से प्रेम का प्रतीक है। बल्कि इसके बदले आपके लिए स्वर्ग की बशारत है। क्या आपने उस मिर्गी की शिकार महिला का किस्सा नहीं सुना जिसने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से आकर अपनी बीमारी की शिकायत करते हुए प्रार्थना का अनुरोध किया था तो आपको उसे कहा:
“अगर तुम सब्र करो तो तुम्हारे लिए स्वर्ग है”। (सही बुखारी: 5652, सही मुस्लिम: 2576)
और सब्र करने वालों के लिए बेहिसाब पुण्य रखे गए हैं। अल्लाह ने फरमाया:
إِنَّمَا يُوَفَّى الصَّابِرُونَ أَجْرَهُمْ بِغَيْرِ حِساب ( سورة الزمر: 10
“सब्र करने वालों को तो उनका बदला बेहिसाब मिलकर रहेगा।” (सूरः अज़्ज़ुमरः10)
रोगी भाई और बहन! इस धरती पर पैदा होने वाले लोगों में सबसे बेहतर लोग संदेष्टा हैं, उन्हें सबसे अधिक आज़माया गया, क्यों? इसलिए कि परीक्ष के बाद ही पद मिलता है। सुनन तिर्मिज़ी की यह हदीस सुनिए हज़रत साद बिन अबी वक़ास रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है, वह कहते हैं कि मैंने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! सबसे अधिक परीक्ष किसकी होती है? तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
أشد الناس بلاء الأنبياء ثم الصالحون ثم الأمثل فالأمثل يبتلى الرجل على حسب دينه فإن كان في دينه صلباً اشتد به بلاؤه وإن كان في دينه رقة ابتلي على قدر دينه فما يبرح البلاء بالعبد حتى يتركه يمشي على الأرض وما عليه خطيئة۔ ( سنن الترمذی: 2398
फरमाया: अंबिया अलैहिमुस्सलाम की, फ़िर जो उन से अति क़रीब हो, फ़िर जो उन से क़रीबतर हो, आदमी को उसके धर्म के अनुसार आज़माया जाता है, इस लिए अगर वे अपने धर्म में दृढ़ हो तो उसकी आज़माइश भी कड़ी होती है। अगर उस धर्म में कमजोरी हो तो उसे उसके दीन की तुलना में उसे आज़माइश में डाला जाता है, और आज़माइश दास के साथ हमेशा रहती है, यहां तक कि उसे ऐसा कर के छोड़ती है कि वह पृथ्वी पर ऐसी हालत में चलता है कि कोई गुनाह नहीं रहता। ” (सुनन तिर्मिज़ी: 2398)
याद रखें कि मुमिन खुशी हो या ग़म हो हर स्थिति में अपने अल्लाह के निर्णय से संतुष्ट रहता है क्योंकि उसका रब उसके विरोध ग़लत फैसला कैसे कर सकता है। आप यहाँ जिन नेमतों से वंचित हैं या जिन संकटों में पंसे हुए हैं कल क़यामत के दिन उनके बदले ऐसा सम्मान देखेंगे कि दुनिया के स्वस्थ लोग उसे देखकर तरसेंगे कि काश हमारी खाल भी कैंचियों से काट दी गई होतीं। अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:
يودُّ أَهلُ العافيةِ يومَ القيامةِ حينَ يعطى أَهلُ البلاءِ الثَّوابَ لو أنَّ جلودَهم كانت قُرِضَت في الدُّنيا بالمقاريضِ (صحيح الترمذي: 2402
“क़्यामत के दिन जब पीड़ित पुरस्कार से नवाजे जाएंगे (तो यह देख कर) स्वास्थ्य और आराम वाले इच्छा करेंगे कि काश! दुनिया में उनके चमड़े कैंचियों से काट दिए जाते (ताकि वह भी आज बड़े इनाम के हकदार होते)। ” (सहीहुत्तिर्मिज़ी: 2402)
इस लिए धैर्य से काम लें, अधिक से अधिक दुआएं करें, फराइज़ और नवाफिल का एहतमाम करें, कुरआन की तिलावत करें, यदि संभव हो सकता हो तो दान करें और हर हालत में अल्लाह से अच्छा गुमान रखें।
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