सफात आलम मुहम्मद ज़ुबैर तैमी
आलस्य मानव समाज का एक ऐसा रोग है जिसके आज अधिकांश लोग शिकार हैं। यह रोग किसी भी इनसान के लिए प्रिय नहीं होता विषेश रूप में जबकि आलस्य अपनी हद को पार कर जाए। यदि शरीर में कभी कभार आलस्य आ जाए तो कोई दोष की बात नहीं कि यह स्वाभाविक मामला है कि शरीर को कभी कभी विश्राम की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन दोष की बात यह है कि आलस्य एक इनसान की पहचान ही बन जाए। इस से इनसान का व्यक्तित्व प्रभावित होता है और जब वह धीरे धीरे आलस्य का आदी बनता जाता है तो फिर उसके लिए उस से छुटकाड़ा पाना भी बड़ा कठिन हो जाता है।
आलसी व्यक्ति कभी भी स्वयं को किसी कठिन काम के लिए तैयार नहीं करता, वह बहाना बनाता रहता है कि यह काम हम से नहीं हो सकता, यह बहुत मुश्किल है और ऐसा मैंने कभी नहीं किया आदि।
अब प्रश्न यह है कि आलस्य का चिकित्सा क्यों कर सम्भव है। और वह कौन से उपाय हैं जिनको अपना कर हम आलस्य से छुटकारा पा सकते हैं ? आइए निम्न में हम इनकी जानकारी प्राप्त करते हैं:
(1) स्वयं का आलसी होना स्वीकार करें:
यदि आप आलस्य से मुक्ति पाने के इच्छुक हैं तो सर्वप्रथम आपको मानना पड़ेगा कि वास्तव में आप आलसी हैं। पहला क़दम यही है कि आप आलसी होने का एतराफ करें ताकि उसका एलाज ढ़ूंड सकें।
(2) आलस्य के कारण की खोज करें:
आपको स्वयं से पूछना है कि आप आसली क्यों हैं। आलस्य के कुछ ऐसे कारण होंगे जिन्हें स्वयं आप ही जान सकते हैं। खुले दिल से उसके कारण का पता लगाएं फिर उसका एलाज शुरू कर दें। आपको सोचना चाहिए कि आलस्य के कारण कितने अवसर को आपने खो दिया, यदि उस समय आलस्य न की होती तो आज कितना आनंदित आप का जीवन होता। विदित है कि इसके लिए आप जिन बुरे स्वभाव के आदी हैं उन्हें आपको छोड़ना होगा।
(3) स्वयं में दृढ़ संकल्प पैदा करें:
आपके अंदर दृढ़ संकल्प आ जाना चाहिए, जीवन में अपना एक उद्देश्य तै करें जिसे पाने के लिए प्रयत्नशील रहें। इसके लिए उत्तम तरीक़ा यह है कि आप सर्वप्रथम अपने लिए छोटे छोटे उद्देश्य तै करें, जैसे किसी पुस्तक को इतने दिनों में पढ़ लेना। क़ुरआन की कोई छोटी सूरः याद करना आदि। जब आप उसे व्यवहारिक रूप देने जाएंगे तो सम्भव है कि आपके मन मस्तिष्क में विभिन्न प्रकार के संदेह पैदा हों उन्हें तुरंत अपने मन से Delete कर दें। एक अरबी कवि कहता हैः
اذا كنت ذا رأى فكن ذا عزيمة فإن فساد الرأى أن تترددا
यदि तुम्हारे पास कोई विचार अथवा उद्देश्य है तो संकल्प रखने वाले बनो, क्यों कि विचार में बिगाड़ तब आता है जब इनसान असमंजस में पड़ जाए।
(4) उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु नफ्स को लगाम दें:
जो कोई भी अपना सपना साकार करना और उद्देश्य प्राप्त करना चाहता हो उसे चाहिए कि वह अपने नफ्स को लगाम दे, अपने नफ्स पर कंट्रोल करे, यदि किसी ने नफ्स को बहलाने की कोशिश नहीं की तो आलस्य उसकी पहचान बनती जाएगी। अरबी भाषा की एक कहावत हैः
النفس كالطفل إن تهمله شب على حب الرضاع وإن تفطمه ينفطم
नफ्स दूध पीते बच्चे के समान है कि यदि तुम उसके प्रति कोताही करोगे तो वह जवान हो जाएगा पर दूध पीने की इच्छा नहीं जाएगी, और यदि उसका दूध छुड़ाओ तो दूध छोड़ देगा।
और जो लोग अपने नफ्स को लगाम देने के लिए प्रयत्नशील होते हैं उनको अल्लाह की तौफ़ीक़ भी मिलती है। अल्लाह ने फरमायाः
وَالَّذِينَ جَاهَدُوا فِينَا لَنَهْدِيَنَّهُمْ سُبُلَنَا سورة العنكبوت 69
रहे वे लोग जिन्होंने हमारे मार्ग में मिलकर प्रयास किया, हम उन्हें अवश्य अपने मार्ग दिखाएँगे।(सूरः अल-अंकबूत 29:69)
(5) खानपान में संतुलन अपनायें:
कभी कभी आलस्य का कारण खानपान का अधिक मात्रा में प्रयोग करना भी बनता है। इस लिए खानपान में संतुलन अपनायें, लती हुई सामग्रियों का सेवन अधिक न करें, और हमेशा खाना सीमित मात्रा में लें, क्यों कि पेट भरने से शरीर भारी होता है और जब शरीर भारी होगा तो स्वाभाविक बात है कि आलस्य आएगी।
(6) सोने में संतुष्टी प्राप्त करें:
24 घंटे में 8 घंटा निरंतर सोने की आदत डालें, यदि उस से अधिक हुआ फिर भी आलस्य आएगी और यदि उस से कम हुआ तब भी आलस्य आएगी, सोने जागने में संतुलन अपनाने की आवश्यकता है। नियमित रूप में कुछ समय निकाल कर हरी सब्ज़ी पर टहलने की आदत डालें।
(7) अपने कामों की एक लिस्ट बना लें:
अपने कामों की प्राथमिकतानुसार एक लिस्ट बना लें, वह लिस्ट आपक जेब में हो अथवा टेबुल पर जहाँ बार बार आपनी नज़र जाती हो और आप उसे देखते हों।
(8) स्वयं का ईमानी प्रशिक्षण करें:
यदि आप अल्लाह वालों के जीवन का अध्ययन करेंगे तो ज्ञात होगा कि वह रातों को बहुत कम सोते थे परन्तु उसके बावजूद दिन में बिल्कुल चुस्त रहते थे, कारण यह था कि उनका सम्बन्ध अपने रब से दृढ़ था, इस लिए अल्लाह से आपका सम्बन्ध दृढ़ होना चाहिए, इसके लिए कुछ काम करने आवश्यक हैं:
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ज़िक्र का एहतमाम करें, सुबह और शाम के ज़िक्र सुस्ती और आलस्य को दूर करने में बहतु बड़ी भूमिका अदा करते हैं।
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वुज़ू का ख़्याल रखें, और हर नमाज़ के लिए ताज़ा वुज़ू करें, सम्भव हो सके तो वुज़ू के पश्चात दो रकअत पढ़ लें, इस से शैतान का दबाव कमज़ोर होगा।
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पांच समय की नमाज़ों की मस्जिद में उपस्थित होकर अपने समय पर पाबंदी करें। विशेष रूप में फज्र के बाद का समय बरकत तथा भलाई का समय है। अल्लाह के रसूल सल्ल. ने फरमायाः मेरी उम्मत को सुबह में बरकत दी गई है। सुबह की नमाज़ के बाद ताज़ा हवा लेने से बहुत सारे रोगों का निवारण होता है और चुस्ती आती है।
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रात की नमाज़ की आदत डालें कि रात में जग कर नमाज़ पढ़ना जहाँ अल्लाह से निकटता की पहचान है तो दूसरे और शरीर से बीमारी को दूर करता है।
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अल्लाह तआला से विनम्रता और प्रेम के साथ दुआ करें कि हे अल्लाह हमें सुस्ती और कोताही से बचा ले। अल्लाह के रसूल सल्ल. ने हमें यह दुआ भी सीखाई है, दुआ यह हैः
اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ الْهَمِّ وَالْحَزَنِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ الْعَجْزِ وَالْكَسَلِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ الْجُبْنِ وَالْبُخْلِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ غَلَبَةِ الدَّيْنِ، وَقَهْرِ الرِّجَالِ،
हे अल्लाह, मैं तेरा शरण चाहता हूं चिंता और दूख से, लाचारी और आलस्य से, बुज़दिली और कंजूसी से, तथा लोगों के बोध तथा प्रबलता से।
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