आपस के मामलात को सुधारने के लिए कितनी जबरदस्त हैं कुरआन हकीम में सूरः हुजरात की यह 10 बातें, काश हम इन्हें अपने व्यावहारिक जीवन में बरतने की कोशिश करतेः
فتبينوا
1- कोई भी बात सुनकर फैलाने से पहले तहक़ीक़ कर लिया करो। कहीं ऐसा न हो कि बात सच न हो और किसी को अंजाने में नुकसान पहुंच जाए।
فأصلحوا
2- दो भाइयों के बीच सुलह करवा दिया करो। सभी ईमान वाले आपस में भाई-भाई हैं।
وأقسطوا
3- हर झगड़े को सुलझाने की कोशिश करो और दो समूहों के बीच न्याय करो। अल्लाह न्याय करने वालों को पसंद करता है।
لا يسخر
4- किसी का मजाक मत उड़ाओ। हो सकता है कि वह अल्लाह के पास तुस से अच्छा हो।
و لا تلمزوا
5- किसी को बेइज्जत मत करो क्यों कि सम्मान और अपमान अल्लाह की ओर से मिलता है।
و لا تنابزوا
6- लोगों को बुरी उपाधियों (उल्टे नामों) से मत पुकारो कि नाम बिगाड़ कर या बुरा नाम देकर पुकारना अच्छी बात नहीं।
إجتنبوا كثيرا من الظن
7- बुरा गुमान करने से बचो कि कुछ गुमान पाप की श्रेणी में आते हैं। जिसका ज़ाहिर अच्छा हो उसके बारे में बुरा गुमान रखना जाइज़ नहीं लेकिन जिसका ज़ाहिर बुरा है उसके बारे में बुरा गुमान रखने में कोई हरज नहीं।
ولا تجسسوا
8- एक दूसरे की टोह में मत लगो कि कोई कमी मालूम की जाए ताकि उसे बदनाम किया जा सके। बल्कि इस्लाम तो यह कहता है कि अगर किसी की कमी का पता चले तो उसे छुपाओ।
ولا يغتب بعضكم بعضا
9- तुम में से कोई एक दूसरे की ग़ीबत न करे (उसके पीठ पीछे उसके दोष बयान न करे) कि यह महा-पाप है और अपने मृत भाई का मांस खाने के बराबर है। जैसे तुम में से कोई अपने मुर्दा भाई का मांस खाना पसंद नहीं करता उसी तरह ग़ीबत से बचो कि यह मुर्दा भाई का मांस खाने के जैसे है।
إن أكرمكم
10- किसी को वंश अथवा जाति के आधार पर गर्व करने का अधिकार नहीं है क्यों कि सब का वंश आदि पुरुष आदम से ही जा कर मिलता है। अल्लाह के हाँ बरतरी का मापदण्ड समुदाय या वंश नहीं बल्कि अल्लाह का भय और उसका आज्ञापालन है। (सूरः अल-हुजरात)
अल्लाह हम सब को ईमानदारी के साथ इन बातों पर अमल करने की तौफीक़ दे। आमीन
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