सफात आलम मुहम्मद ज़ुबैर तैमी
मेरा नाम अहमद फहद (लुसियो सी डो रेगू ) है, में भारतीय राज्य गोवा का रहने वाला हूँ, मेरा जन्म ईसाई परिवार में हुआ लेकिन अल्लाह ने मुझे इस्लाम की तौफ़ीक़ दी और में इस्लाम को गले लगा लिया, मुस्लिम परिवार की एक नेक लड़की से दो साल पहले मैंने शादी की है और अभी भारत में ही परिवार के साथ सुखद जीवन बिता रहा हूँ। .
जब में कुवैत में था तो उसी समय अल्लाह ने मुझे इस्लाम की दौलत से मालामाल क्या. मैं ईसाई धर्म का कोई खास बाध्य तो नहीं था और न ही मैंने कोई खास ईसाई धर्म का अध्ययन ही किया था लेकिन इतना जरूर है कि हर हफ्ते चर्च जाया करता था और समझता था कि मैं ईसाई हूं इस लिए किसी अन्य धर्म से मेरा कोई सरोकार नहीं. एक बार मेरा एक साथी जो मेरे फ्लैट के बगल में रहता था ipc से कुछ किताबें लाया और मेरे मेज पर रखते हुए ताकीद की कि मैं उन पुस्तकों का अध्ययन करूं। मैंने तुरंत उसे जवाब दिया कि :
” मैं ईसाई हूं , इस्लाम के बारे में बिल्कुल नहीं पढ़ सकता ” .
कई बार मैं ने इन किताबों को अपने टेबुल से हटाया और वह था कि बड़े संहिता से मिलता और वह किताबें मेरे अनुपस्थिति में मेरे मेज पर रख देता. एक दिन की बात है, मैं अपने रूम में बैठा हुआ था, मेरे साथी ने अंग्रेजी में कुछ इस्लामी किताबें मेरे मेज पर रख छोड़ा था , जब मैं ने उन में से एक किताब उठा कर पढ़ा तो वह पुस्तक मुझे बहुत अच्छी लगी, तभी मेरा दिमाग बदल गया, और मैं ने उसका अध्ययन शुरू कर दिया, जब मेरे उस मित्र से दोबारा मुलाकात हुई तो मैं ने उस से कहा कि मैं और भी अधिक किताबें पढ़ना चाहता हूँ, उस से यह पूछना था किमानो उसके पूरे शरीर में खुशी की लहर दौड़ गई हो।
उसने हर्ष और उल्लास से मुझे गले लगा लिया और उसी दिन ipc से किताबें लाकर मेरे हवाले कर दी. मैं ने जब इस्लाम का अध्ययन किया तो इस्लाम की सत्यता मेरे दिल में बैठ गई और ईसाइयत के सारे पोल खुल गए अंततः एक दिन मैं ipc आया, मेरे पास कुछ अपत्तियां थीं, कुछ संदेह थे, उनका भी संतोषजनक जवाब दे दिया गया. इस लिए मैंने उसी दिन इस्लाम स्वीकार करने का फैसला किया और कल्माए शहादत पढ़ कर अपने निर्माता का हो रहा। अल्हमदुलिल्लाह।
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