इस्लाम संतुलन और मध्यमार्ग का समर्थक है।

इस्लाम संतुलन और मध्यमार्ग का समर्थक है।

अतिश्योक्ति और उग्रवाद सीमा से आगे बढ़ जाने का नाम है,  इस्लाम संतुलन और मध्यमार्ग का समर्थक है।  जो कोई भी इस्लाम के आदेश पर विचार करेगा उसे  महसूस होगा कि इस्लामी अहकाम संतुलन, मध्यम  और सुविधा पर आधारित हैं और हिंसा, असंतुलन और कट्टरपन से इस का दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं। बल्कि इस्लाम ने हर प्रकार की अतिश्योक्ति की निंदा की है, अतिश्योक्ति से डराया है और इस से मुसलमानों को हर स्थिति में बचने पर बल दिया है। और ऐसा क्यों न हो जबकि मुसलमान स्वयं एक मध्यमार्ग पर स्थित समुदाय हैं , जैसा कि अल्लाह का आदेश है:

 

وَكَذَٰلِكَ جَعَلْنَاكُمْ أُمَّةً وَسَطًا لِّتَكُونُوا شُهَدَاءَ عَلَى النَّاسِ وَيَكُونَ الرَّسُولُ عَلَيْكُمْ شَهِيدًا ۗ(سورة البقرة 143

“और इसी प्रकार हमने तुम्हें (न्याय करने वाला) उत्तम समुदाय बनाया है, ताकि तुम सारे मनुष्यों पर गवाह हो, और रसूल तुम पर गवाह हों।”   (सूरः बक़रा: 143)

 

रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी उम्मत को अतिश्योक्ति (ग़ुलू) से डराया और कहा कि आज तक जितनी भी क़ौमें तबाह और बर्बाद हुईं  इसी अतिश्योक्ति के कारण हुईं, जैसा कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा:

أيها الناس! إياكم والغلو في الدين، فإنما أهلك من كان قبلكم الغلو في الدين – أخرجه أحمد:1/215، والنسائي:268، وابن ماجه:3029

“लोगो! तुम लोग दीन के सम्बन्ध में अतिश्योक्ति करने से बचो ‘क्योंकि अगली पीढ़ियों को दीन में अतिश्योक्ति ने ही मार डाला था। “(नसाई 268, इब्नेमाजाः3029)

 

इंसान जब अतिश्योक्ति का शिकार हो जाता है तो वह अल्लाह और उसके आदेशों को भूल जाता है, जिसका परिणाम इच्छाओं का अनुसरण और पालन के रूप में निकलता है, ऐसी स्थिति में न केवल वह भटक जाता है बल्कि अपने साथ दूसरों को भी सत्य मार्ग से भटका देता है।

 

  अल्लाह ने यहूदियों और ईसाइयो के धर्म में परिवर्तन आने का सबसे बड़ा कारण धर्म के मामले में हद से आगे बढ़ना और चरम पर पहुंचना बताया है जैसा कि अल्लाह ने कहा:

قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ لَا تَغْلُوا فِي دِينِكُمْ غَيْرَ الْحَقِّ وَلَا تَتَّبِعُوا أَهْوَاءَ قَوْمٍ قَدْ ضَلُّوا مِن قَبْلُ وَأَضَلُّوا كَثِيرًا وَضَلُّوا عَن سَوَاءِ السَّبِيل- سورة المائدة: 77

 

“(कह दो, “ऐ किताब वालो! अपने धर्म में नाहक़ हद से आगे न बढ़ो और उन लोगों की इच्छाओं का पालन न करो, जो इससे पहले स्वयं पथभ्रष्ट हुए और बहुतो को पथभ्रष्ट किया और सीधे मार्ग से भटक गए”। (सूरः अल-माइदा: 77)

 अतः मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने मानने वालों को अपने जीवन के अंतिम क्षणों में भी यहूदियों और ईसाइयों की रविश पर चलने से रोका। हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि “जब रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर मृत्यु के चिन्ह ज़ाहिर हुए तो आप अपनी पवित्र चादर बार बार अपने चेहरे से हटा रहे थे और उसी हालत में कह रहे थे:

“यहूदियों और ईसाइयों पर अल्लाह का अभिशाप हो जिन्होंने अपने नबियों की कब्रों को मस्जिद बना लिया” वास्तव में उन्हें यहूदियों और ईसाइयों के कर्मों से डरा रहे थे। हज़रत आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं कि यदि आपको यह डर न होता तो आपकी क़ब्र भी खुले स्थान पर होती। ( सही बुख़ारी: 4441)

 

ईमान में अतिश्योक्तिः

 यहूदी और ईसाई इसी अतिश्योक्ति के कारण इस ब्रह्मांड के सबसे बड़े अपराधी ठहरे, यहूदियों ने हज़रत उज़ैर अलैहिस्सलाम को अल्लाह का बेटा बताया और ईसाइयों ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को, और फिर अपने धर्मज्ञाताओं और संसार-त्यागी संतों को भी आध्यात्मिक हस्तियां बताकर उनकी पूजा में व्यस्त हो गए, अल्लाह ने कहा:

وَقَالَتِ الْيَهُودُ عُزَيْرٌ ابْنُ اللَّـهِ وَقَالَتِ النَّصَارَى الْمَسِيحُ ابْنُ اللَّـهِ ۖ ذَٰلِكَ قَوْلُهُم بِأَفْوَاهِهِمْ ۖ يُضَاهِئُونَ قَوْلَ الَّذِينَ كَفَرُوا مِن قَبْلُ ۚ قَاتَلَهُمُ اللَّـهُ ۚ أَنَّىٰ يُؤْفَكُونَ  اتَّخَذُوا أَحْبَارَهُمْ وَرُهْبَانَهُمْ أَرْبَابًا مِّن دُونِ اللَّـهِ وَالْمَسِيحَ ابْنَ مَرْيَمَ وَمَا أُمِرُوا إِلَّا لِيَعْبُدُوا إِلَـٰهًا وَاحِدًا ۖ لَّا إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ ۚ سُبْحَانَهُ عَمَّا يُشْرِكُونَ -سورة التوبة 30-31

” यहूदी कहते हैं, “उज़ैर अल्लाह का बेटा है।” और ईसाई कहते हैं, “मसीह अल्लाह का बेटा है।” ये उनकी अपने मुँह की बातें हैं। ये उन लोगों की-सी बातें कर रहे हैं जो इससे पहले इनकार कर चुके हैं। अल्लाह की मार हो इन पर! ये कहाँ से औंधे हुए जा रहे हैं! उन्होंने अल्लाह से हटकर अपने धर्मज्ञाताओं और संसार-त्यागी संतों और मरयम के बेटे ईसा को अपने रब बना लिए है – हालाँकि उन्हें इसके सिवा और कोई आदेश नहीं दिया गया था कि अकेले एक अल्लाह की वे बन्दगी करें, जिसके सिवा कोई और पूज्य नहीं। उसकी महिमा के प्रतिकूल है वह शिर्क जो ये लोग करते हैं।”  । (सूरः तौबा: 30.31)

 अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यही डर था कि ऐसा न हो कि मेरी उम्मत भी मेरी शान में अतिश्योक्ति करने लगे, इसी लिए आपने अपनी क़ौम को हद से आगे बढ़ाने से रोकते हुए कहाः

   لا تطروني كما أطرت النصارى ابن مريم، إنما أنا عبد فقولوا عبد الله ورسوله  – صحيح البخارى 3445

“तुम मुझे मेरे स्थान से इतना न बढ़ाओ जितना कि ईसाइयों ने ईसा बिन मरयम  को बढ़ाया, मैं केवल दास हूं इस लिए तुम मुझे अल्लाह का बंदा और उसका रसूल कहो”। (सही बुख़ारी)

 

इबादत में अतिश्योक्तिः

हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि: “अल्लाह के रसूल सलल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल ने मुझे दसवीं ज़िलहिज्जा के दिन रमी (कंकरियाँ मारने) के लिये छोटी कंकर चुन कर देने को कहा,  मैं उन्हें सात कंकर (जो चने के दाने के बराबर थीं) चुन कर दीं, आप अपनी सवारी पर सवार थे और उन कनकरियों को अपने हाथ में रखते हुए फ़रमा रहे थे:

 بأمثال هؤلاء فارموا…، وإياكم والغلو فإنما هلك من كان قبلكم بالغلو في الدين ” -ابن ماجة:3029

“इन जैसी कनकरियों से रमी करो”। (जब आपने देखा कि लोग कनकरियों की बजाय पत्थर उठा रहे हैं) आपने कहाः “लोगो! तुम धर्म के मामले में ग़ुलू से बचो ‘क्योंकि अगली पीढ़ियों को दीन में ग़ुलू ने ही मार डाला था “(इब्ने माजा 3029, अल्लामा अलबानी ने इसे सही इब्नेमाजाः2455 में सहीह कहा है)

 (2) अनस रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं: “तीन व्यक्ति रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नियों के घर आए, ताकि उन से अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की इबादत के मामले में पूछें। जब उन्हें आपकी इबादत के सम्बन्ध में बताया गया तो मानो उन्हों ने उसे कम समझा और कहा: हमारा रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से क्या मुक़ाबला, आपके तो सारे अगले पिछले गुनाह माफ कर दिए गए हैं। (इस लिए हमें आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अधिक इबादत करने की जरूरत है) तो उन में से एक ने कहा: मैं तो हमेशा सारी रात नमाज़ पढूंगा। दूसरे ने कहा: मैं हमेशा रोज़ा रखूँगा, कभी रोज़ा को नागा नहीं करूँगा। तीसरे ने कहा: मैं महिलाओं से अलग रहूंगा और कभी शादी नहीं करूंगा। (जब रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इन बातों का पता चला तो) आप उनके पास आए और उन से पूछा: क्या तुम लोगों ने इस तरह कहा है? (जब उन्होंने सकारात्मक जवाब दिया तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया) “मैं तुम सब में अल्लाह से अधिक डरने वाला और उसका सबसे ज्यादा डर अपने दिल में रखने वाला हूँ, लेकिन मैं रोज़ा भी रखता हूँ और रोज़ा को नाग़ा भी करता हूँ, रात में नमाज़ भी पढ़ता हूं और सोता भी हूँ, और महिलाओं से शादी भी करता हूँ, तो ये सारे काम मेरी सुन्नत हैं, जिसने मेरी सुन्नत से मुंह मोड़ा वह मुझसे नहीं यानी उसका मुझसे संबंध नहीं (बुखारी, मुस्लिम)

 

(3) हज़रत औन बिन अबी जुहैफा अपने बाप से रिवायत करते हुए कहते हैं:

  “अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत सलमान फारसी और हज़रत अबुद्दरदा रज़ियल्लाहु अन्हुमा को भाई भाई बनाया था, हज़रत सलमान फारसी रज़ियल्लाहु अन्हु एक दिन हज़रत अबुद्दरदा रज़ियल्लाहु अन्हु के घर गए, तो हज़रत उम्मे दरदा रज़ियल्लाहु अन्हा को परागंदा हाल देखकर पूछा: यह क्या हाल बना रखा है तुमने? उन्होंने जवाब दिया कि तुम्हारे भाई अबुद्दरदा को दुनिया से कोई रुचि नहीं है। इतने में अबुद्दरदा रज़ियल्लाहु अन्हु भी आ गए, हजरत उम्मे दरदा रज़ियल्लाहु अन्हा ने उनके लिए खाना बनाया और उन्हें खाने के लिए आमंत्रित किया, हज़रत सलमान फारसी रज़ियल्लाहु अन्हु ने अबुद्दरदा रज़ियल्लाहु अन्हु  को भी खाने पर बुलाया तो उन्होंने कहा: मैं रोज़ा से हूँ। हज़रत सलमान फारसी रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: मैं तब तक नहीं खाऊँगा जब तक आप नहीं खाते। उन्होंने (तब उन्हों ने रोज़ा तोड़ कर) उनके साथ खाना खाया। जब रात हुई तो हज़रत अबुद्दरदा रज़ियल्लाहु अन्हु नमाज़ के लिए खड़े हुए तो हज़रत सलमान फारसी रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा “सो जायें”। वह सो गए। थोड़ी देर बाद नमाज़ के लिए फिर खड़े हुए तो उन्हें डांटा कि सो जायें, वह सो गए। रात के पिछले भाग में हज़रत अबुद्दरदा रज़ियल्लाहु अन्हु को जगाया और कहा: अब उठें, फिर दोनों ने उठकर नमाज़ पढ़ी, फिर हज़रत सलमान फारसी रज़ियल्लाहु अन्हु ने हज़रत अबुद्दरदा रज़ियल्लाहु अन्हु को समझाते हुए कहा:

إن لربك عليك حقًّا، ولنفسك عليك حقًّا، ولأهلك عليك حقًّا، فأعطِ كل ذي حق حقّه

 “आप पर अपने रब का अधिकार है, आप पर आपकी जान का भी अधिकार है, आप पर आपकी पत्नी का भी अधिकार है, हर हक़दार को उसका हक़ अदा करें।

हज़रत अबुद्दरदा रज़ियल्लाहु अन्हु अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आए, और सारा माजरा सुनाया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “सलमान ने सच कहा है”। (सही बुखारी)

 

(4) अनस रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं:

“रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मस्जिद में आए तो देखा कि एक रस्सी दो स्तंभों के बीच बंधी हुई है। तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने पूछा: यह रस्सी किस लिए है? लोगों ने बताया कि ये उम्मुल मोमिनीन हज़रत ज़ैनब की रस्सी है, वह रात में इबादत करती हैं जब खड़ी खड़ी थक जाती हैं तो रस्सी का सहारा ले लेती हैं जिस से कुछ थकान दूर हो जाती है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

حلّوه، ليصل أحدكم نشاطه، فإذا فتر فليرقد -البخاري (2 /48)، ومسلم (1/542

 “उसे खोल दो, एक व्यक्ति को चाहिए कि वह उस समय तक नमाज़ पढ़े जब वह चुस्ती का अनुभव करे, जब थक जाए तो सो जाये”। (सही बुख़ारी 2/48, सही मुस्लिम 1/542)

 

(5) सय्येदना अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं:

  रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पवित्र निगाह प्रवचन के बीच एक व्यक्ति पर पड़ी जो धूप में खड़ा था, आपने उस व्यक्ति के बारे में लोगों से पूछा तो लोगों ने बतलाया कि उसका नाम अबू इस्राईल है, उसने इस बात की नज़र मानी है कि वह धूप में खड़ा रहेगा, बैठेगा नहीं और न छाया प्राप्त करेगा और न बातचीत करेगा और रोज़ा रखेगा। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा: उस से बताओ कि वह बातचीत करे, छाया हासिल करे और बैठ जाए, लेकिन वह अपना रोज़ा पूरा कर ले “(बुखारी)

 

मामलात में अतिश्योक्ति की निंदा:

इस्लाम विनम्रता, सुविधा, धैर्य और नैतिकता का धर्म है, इसी लिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तीव्रता,  तंगी,  अनैतिकता और उग्रवाद की भरपूर निंदा की है, बल्कि उसको किसी भी सांसारिक या पारलौकिक मामले में तबाही का कारण सिद्ध  दिया है।

  हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती हैं, कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा: “वास्तव में नरमी जिस चीज में प्रवेश करती है तो उसे अच्छा बना देती है, और जिस चीज़ से गायब हो जाती है उसे बुरा कर के छोड़ती है”। (सही मुस्लिम) एक अन्य रिवायत में है: “अल्लाह मेहरबान है और वह हर मामले में नरमी को पसंद करता है”। (बुखारी, मुस्लिम)

 रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने विभिन्न अवसर पर विनम्रता अपनाई और विनम्रता अपनाने का आदेश दिया, यहाँ तक कि आपका पवित्र जीवन विनम्रता का प्रतिक बन गया।

हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं:

 “एक बद्दू व्यक्ति मस्जिद में आया और उसने मस्जिद के एक कोने में पेशाब करना शुरू कर दिया, (वहां पर अल्लाह के रसूल और सहाबा उपस्थित थे) लोग उसकी ओर  लपके ताकि उसकी पिटाई करें, लेकिन रसूल अल्लाल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन्हें रोक दिया, कहा: उसे पेशाब कर लेने दो,  और उसके पेशाब पर एक डोल पानी बहा दो। तुम आसानी पैदा करने वाले बना कर भेजे गए हो न कि सख्ती अपनाने वाले।” (सही बुखारी)। इब्ने माजा की एक हदीस में है: “आपने उस व्यक्ति को न तो डांटा और न ही बुरा भला कहा, बल्कि समझाते हुए कहा:” यह मस्जिदें पेशाब पाखाना के लिए नहीं, बल्कि अल्लाह तआला के ज़िक्र और नमाज़ के लिए हैं “। इसी रिवायत में यह भी है कि “उस व्यक्ति ने दुआ करते हुए ऊंचे स्वर में कहा:

“या अल्लाह! मुझ पर और मुहम्मद पर ही दया करना, हमारे अलावा किसी और पर कभी दया न करना ” आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मुस्कुराते हुए कहा:” तुम ने (अल्लाह की) व्यापक (दया) को छोटा करके रख दिया।” (इब्ने माजा, अबू दाऊद)

 यदि इस जैसी घटना भारत में हुई होती तो शायद बहुत बड़ा दंगा हो जाता जिस में दसियों निर्दोष लोगों की जान चली जाती और अक्सर दंगे उन्हीं जैसी घटनाओं से शुरू होते हैं, ‘एक पक्ष ने मस्जिद के सामने से जुलूस निकाला या बाजा बजाया या पटाखे जलाए, मुसलमान नौजवानों ने पत्थरबाज़ी की, तो दंगे शुरू हो गए। जबकि अक्सर स्थानों पर इस तरह की कार्यवाही, पूरी तैयारी के साथ दंगा भड़काने के लिए ही की जाती है,  अफसोस कि मुसलमान इस योजना को समझ नहीं पाते, जोश में आकर कोई ऐसी हरकत कर देते हैं कि अन्य धर्मों के कट्टरपंथियों को दंगों का बहाना मिल जाता है और फिर भयंकर दंगों में अपना नुकसान खुद कर बैठते हैं।

 आज दुनिया के सभी देशों में कट्टरता का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है, और इस मामले में कुछ मुसलमान भी अन्य लोगों से पीछे नहीं रहे, जो वास्तव में शरीअत की आत्मा को न समझने का परिणाम है वरना इस्लाम में अतिश्योक्ति और कट्टरता के लिए कोई स्थान नहीं, बल्कि इसी कट्टरता के कारण कितने लोग इस्लाम से भी हाथ धो बैठते हैं। जैसा कि हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से मरवी है, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: “धर्म आसान है, जो व्यक्ति धर्म में बेजा सख्ती करता है तो धर्म उस पर ग़ालिब आ जाता है”। [ अर्थात् ऐसा आदमी पराजित हो जाता है और धर्म का पालन छोड़ देता है] (सही बुखारी)

सारांश यह कि इस्लाम दया और कृपा का समर्थक है, यह ऐसा मध्यमार्ग है जिसे अल्लाह ने सम्पूर्ण मानवता को उपहार के रूप में दिया है, इसका हिंसा, कट्टरता और अतिश्योक्ति से कोई संबंध नहीं। अल्लाह हमें इस्लाम की वास्तविक शिक्षाओं को अपने व्यवहारिक जीवन में लागू करने की तौफीक़ प्रदान करे। आमीन

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